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कभी नहीं देखा टीवी, 8 साल तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी. पैदल यात्रा की, हीरा व्यापारी की 9 साल की बेटी बनी संन्यासी

सूरत: गुजरात (Gujarat News) में सूरत (Surat News) के एक हीरा कारोबारी (Diamond Businessman)  की 8 साल की बेटी ने आलीशान जिंदगी त्याग कर संन्यास (monkhood) धारण करने का फैसला लिया है. खेलने-कूदने और नाचने की उम्र में ही डायमंड कारोबारी धनेश की उत्तराधिकारी बेटी बुधवार को जैन धर्म ग्रहण कर संन्यासिनी बन गई. इस बच्ची का नाम देवांशीं संघवी है, जो दो बहनों में बड़ी भी है. मंगलवार को जैन धर्म के दीक्षा कार्यक्रम में देवांशी ने दीक्षा ग्रहण की

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हीरा कारोबारी की बेटी देवांशी संघवी ने 367 दीक्षा इवेंट्स में भाग लिया और इसके बाद वह संन्यास धारण करने के प्रति प्रेरित हुई. एक फैमिली दोस्त ने कहा कि उसने आज तक न कभी टीवी देखी और न कभी मूवी।इतना ही नहीं, वह कभी किसी रेस्टोरेंट भी नहीं गई है. अगर देवांशी संन्यास का मार्ग नहीं चुनतीं तो बालिग होने पर करोड़ों की हीरा कंपनी की मालिकिन होतीं।

देवांशी के परिवार के ही स्व. ताराचंद का भी धर्म के क्षेत्र में एक विशेष स्थान था। उन्होंने श्री सम्मेदशिखर का भव्य संघ निकाला और आबू की पहाडिय़ों के नीचे संघवी भेरूतारक तीर्थ का निर्माण करवाया था। सूरत में ही देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकाली गई थी। इसमें 4 हाथी, 20 घोड़े, 11 ऊंट थे। इससे पहले मुंबई और एंट्वर्प में भी देवांशी की वर्षीदान यात्रा निकली थी। देवांशी 5 भाषाओं की जानकार है। वह संगीत, स्केटिंग, मेंटल मैथ्स और भरतनाट्यम में एक्सपर्ट है। देवांशी को वैराग्य शतक और तत्वार्थ के अध्याय जैसे महाग्रंथ कंठस्थ हैं।

कभी नहीं देखा टीवी, 8 साल तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी. पैदल यात्रा की

देवांशी ने 8 साल की उम्र तक 357 दीक्षा दर्शन, 500 किमी पैदल विहार, तीर्थों की यात्रा व कई जैन ग्रन्थों का वाचन कर तत्व ज्ञान को समझा। देवांशी के माता-पिता अमी बेन धनेश भाई संघवी ने बताया कि उनकी बेटी ने कभी टीवी देखा नहीं, जैन धर्म में प्रतिबंधित चीजों को कभी इस्तेमाल नहीं किया। न ही कभी भी अक्षर लिखे हुए कपड़े पहने। देवांशी ने न केवल धार्मिक शिक्षा में, बल्कि क्विज में गोल्ड मेडल अर्जित किया। भरतनाट्यम, योगा में भी वह प्रवीण है।

4 महीने की उम्र में त्याग दिया था रात का खाना

देवांशी जब 25 दिन की थी तब से नवकारसी का पच्चखाण लेना शुरू किया। 4 महीने की थी तब से रात्रि भोजन का त्याग कर दिया था। 8 महीने की थी तो रोज त्रिकाल पूजन की शुरुआत की। 1 साल की हुई तब से रोजाना नवकार मंत्र का जाप किया। 2 साल 1 माह से गुरुओं से धार्मिक शिक्षा लेनी शुरू की और 4 साल 3 माह की उम्र से गुरुओं के साथ रहना शुरू कर दिया था।

मेरठ में एसएस जैन सभा की ओर से एक जनवरी को जैन नगर स्थित गुरु निहाल स्मारक स्थल पर भव्य जैन भागवती दीक्षा कार्यक्रम हुआ। इस आयोजन में सोनीपत की अंजलि और नेपाल की मान्या जैन सांसारिक जीवन से संन्यास लिया। इस दीक्षा से पहले दोनों बेटियों की महाभिनिष्क्रमण यात्रा हुई।

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