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आनंद मोहन : आजाद भारत का वह पहला नेता जिसे सुनाई गई थी फांसी की सजा, जिसने ना सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया

आनंद मोहन : आजाद भारत का वह पहला नेता जिसे सुनाई गई थी फांसी की सजा

आनंद मोहन : आरती शर्मा- बिहार, एक ऐसा राज्य जहां से अहिंसा की अवधारणा उत्पन्न हुई। मानव जाति की भलाई के लिए इतिहास का सबसे आकर्षक विचार यहीं की देन माना जाता है। यहीं से गौतम बुद्ध और भगवान महावीर ने 2600 साल पहले अहिंसा की अवधारणा विकसित किया। लेकिन दुर्भाग्यवश यहां के लोग कभी भी अहिंसा के महत्त्व को नहीं समझ सके और देखते ही देखते आगे चल कर बिहार एक ऐसा राज्य बन गया जहां विकास कम और बाहुबली नेताओं का उदय ज्यादा देखा गया.

अदालत से मिली थी मौत की सजा, हाई कोर्ट ने जिसे बदल दिया

बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का हमेशा से ही बोलबाला रहा है। फिर चाहे वह शहाबुद्दीन हो, सूरजभान हो, छोटे सरकार के नाम से जाने जाने वाले अनंत सिंह हो या फिर सुनील पांडे हो। उनमे से ऐसे ही एक बाहुबली JDU के पूर्व MP आनंद मोहन हैं। आनंद मोहन पर अपराध के आरोप तो कई थे, लेकिन उन पर सबसे संगीन अपराध का आरोप गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या का लगा था। इसी मामले में उन्हें फांसी की सजा हुई। वे आजाद भारत के पहले नेता थे, जिन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी थी।

आनंद मोहन के राजनीतिक करियर की शुरुआत

आनंद मोहन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे अस्वीकार किया जा चुका है। बता दें कि आनंद मोहन एक जमाने में उत्तरी बिहार के कोसी क्षेत्र के बाहुबली कहलाते थे। आनंद मोहन के 17 साल के उम्र में बिहार में जेपी आंदोलन शुरू हुआ है और यहीं से उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई थी।

राजनीति में उनकी एंट्री 1990 में हुई। तब पहली बार सहरसा से MLA बने थे। उसके बाद पप्पू यादव से हिंसक टकराव की घटनाएं देश भर में चर्चा का विषय बनीं थी। 1994 में उनकी वाइफ लवली आनंद ने भी वैशाली लोकसभा का उपचुनाव जीतकर राजनीति में एंट्री की थी।
आनंद मोहन ने जेल से ही 1996 का लोकसभा चुनाव समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी। 2 बार सांसद रहे और उनकी पत्नी लवली आनंद भी एक बार सांसद रह चुकी हैं।

लिख चुके हैं अब तक कई किताब

गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया के हत्या मामले में उम्रकैद की सजा भुगत रहे आनंद मोहन की लिखी कहानी ‘पर्वत पुरुष दशरथ’ काफी फेमस है। जेल में सजा काटने के दौरान आनंद ने अपनी दो पुस्तकें “कैद में आजाद कलम’ और “स्वाधीन अभिव्यक्ति’ लिखी, जो प्रकाशित हो चुकी हैं। “कैद में आजाद कलम’ को संसद के ग्रंथालय में भी जगह दी गई है।

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