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Shardiya Navratri Fifth Day: नवरात्रि के पांचवें दिन करें स्कंदमाता की पूजा, इस ग्रह की पीड़ा से मिलता है छुटकारा

Shardiya Navratri Fifth Day: रविवार 10 अक्टूबर को नवरात्रि का पांचवा दिन है। इस दिन माता के स्कंद स्वरूप की आराधना की जाती है। देवी स्कंद यानी भगवान कार्तिकेय की माता है इसलिए इनको स्कंदमाता कहा जाता है। देवी की आराधना से बुध ग्रह से संबंधित दोषों का निवारण होता है।

ऐश्वर्य के साथ मोक्ष की देवी है

मां स्कंदमाता की चार भुजाधारी हैं। देवी दो हाथों में कमल, एक हाथ में कार्तिकेय और एक हाथ से अभय मुद्रा धारण की हुए हैं। कमल पर विराजमान होने के कारण देवी का एक नाम पद्मासना भी है। माता की पूजा से भक्तों को सुख और ऐश्वर्य के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है।

कार्तिकेय की है माता

शास्त्रोक्त कथा के अनुसार राक्षस तारकासुर ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उससे वर मांगने को कहा, तब तारकासुर ने अजर-अमर होने का वरदान मांग लिया। ब्रह्मा जी ने उसे समझाया की इस धरती पर जिसने भी जन्म लिया है उसे मरना ही है। तब उसने वर मांगा कि वह शिव के पुत्र द्वारा ही उसकी मृत्यु हो। ब्रह्मा जी ने उसको तथास्तु कहा और चले गए। वरदान मिलने पर तारकासुर ने पूरी दुनिया में तबाही मचाना शुरू कर दिया और लोगों को मारने लगा। उसे यह लगता था कि शिव जी बैरागी हैं, इसलिए वे विवाह नहीं करेंगे। मगर, यह उसकी भूल थी। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण महादेव के पास पहुंचे और विवाह करने का निवेदन किया। तब उन्होंने देवी पार्वती से विवाह किया और कार्तिकेय के पिता बने। जब भगवान कार्तिकेय बड़े हुए, तब उन्होंने तारकासुर का वध किया और धरती को अत्याचार से मुक्त किया।

सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी

शास्त्रों में मां स्कंदमाता की आराधना का काफी महत्व है। इनकी उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। मन को एकाग्र और पवित्र रखकर स्कंदमाता की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है। इसके अलावा स्कंदमाता की कृपा से संतान के इच्छुक दंपत्ति को संतान सुख प्राप्त होता है।

मंत्रः

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

स्तुतिः

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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