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कतर्नियाघाट अभयारण्य के निकट रहने वाले सैकड़ों बच्चों का भविष्य संवार रही ‘मोगली पाठशाला’| इन इलाकों के करीब 350 बच्चे अध्यनरत

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बहराइच – कतर्नियाघाट वन्य जीव अभयारण्य में वन विभाग और सामाजिक संगठनों के सहयोग से चलाई जा रही ‘‘मोगली पाठशाला’’ जंगल से सटे रिहायशी इलाकों में रहने वाले बच्चों की जिंदगी में तालीम की रोशनी ला रही है।

अपनी तरह की इस अनूठी पाठशाला में बच्चों को प्रोजेक्टर, लैपटॉप, टैबलेट, मोबाइल, टीवी स्क्रीन वगैरह पर दिलचस्प एवं मनोरंजक ढंग से आधुनिक शिक्षा दी जा रही है। साथ ही उनकी निरंतर काउंसिलिंग कर उन्हें सामान्य शिक्षा के साथ जंगल एवं प्रकृति के महत्व, जंगल से उनके रिश्ते तथा जानवरों के बारे में बताते हुए जंगल से दोस्ती का पाठ पढ़ाया जा रहा है। ब्रिटिश लेखक रुडयार्ड किपलिंग के उपन्यास ‘‘द जंगल बुक’’ का पात्र ‘‘मोगली’’ जब 1990 के दशक में जापानी टीवी एनीमेशन सीरीज ‘‘द जंगल बुक शोनेन मोगली’’ में जीवंत होकर उभरा तो उसका किरदार लोगों में खूब मशहूर हुआ था।

कतर्नियाघाट इलाकों के करीब 350 बच्चे अध्ययनरत हैं

इस अनूठी पाठशाला के संचालन में अहम भूमिका निभा रहे प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) आकाशदीप बधावन ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘वन्य क्षेत्रों और उसके आस-पास बहुत से समुदाय रहते हैं जिनका जीवन जंगल पर निर्भर है और ये कहीं न कहीं हाशिए पर रह रहे समाज से आते हैं। अभयारण्य के मोतीपुर और बर्दिया क्षेत्र में संचालित दो मोगली स्कूलों में इन इलाकों के करीब 350 बच्चे अध्ययनरत हैं।

अभी हम इसे एक ट्यूशन सेंटर की तरह संचालित कर रहे हैं। फिर भी हमारे यहां मोतीपुर में लगभग 150 और बर्दिया में करीब 200 बच्चे पढ़ने आते हैं।’’ उन्होंने बताया, ‘‘जंगल से सटे रिहायशी इलाकों के ये बच्चे कभी लकड़ी बीनने तो कभी खेल-खेल में घने जंगल में चले जाते थे। कभी कभार इनका खतरनाक वन्यजीवों से सामना होता था।

अब मोगली स्कूल में जाने वाले बच्चे इन सबसे बचे हुए हैं। बच्चों के माता-पिता भी जागरूक हो रहे हैं और उनका भी हमें खूब समर्थन मिल रहा है।’’ बधावन कहते हैं, ‘‘यहां इंसान और जंगली जानवरों के बीच टकराव आम बात है। खासकर ‘मानव बनाम तेंदुए’ का संघर्ष। अक्सर हम तेंदुए को बचाने आते हैं। इसी हफ्ते तेंदुए के हमलों में आठ लोग घायल हुए। हमने बृहस्पतिवार को तेंदुए को बेहोश कर उसे बचाया। इससे पहले तेंदुओं द्वारा बच्चों को मारे जाने की घटनाएं हुई थीं।’’

कतर्नियाघाट ‘दुधवा टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन’ ने काफी मदद की है

उन्होंने कहा, ‘‘इसीलिए स्थानीय निवासियों को जागरूक करना और उनका समर्थन पाना जरूरी है। हम जानवरों को कहीं और नहीं ले जा सकते, रास्ते भी नहीं बंद नहीं किए जा सकते। लेकिन उन्हें जागरूक करने और उनमें भरोसा जगाने के लिए हमने जो गतिविधियां शुरू की हैं उन्हीं में से एक है मोगली स्कूल को और विस्तार देना और उसे बेहतर बनाना है।’’ डीएफओ ने बताया कि इन स्कूलों के संचालन में ‘दुधवा टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन’ ने काफी मदद की है।

इसके अलावा नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी से जुड़ी हरियाणा की ‘जीवम फाउंडेशन’ ने इस स्कूल के लिए ‘‘अपनी पाठशाला’’ नामक अपनी परियोजना के तहत 10 लैपटॉप दिए हैं। उन्होंने बताया कि पाठशाला के लिए सामाजिक संगठनों के साथ साथ व्हाट्सऐप ग्रुप पर दोस्तों से भी किताबें एवं अन्य पठन पाठन तथा खेल सामग्री की मदद ली गयी है। शिक्षकों के रूप में वन कर्मी, पशु चिकित्सक, विशेष बाघ संरक्षण बल (एसटीपीएफ) के जवान, प्रांतीय सशस्त्र सीमा बल (पीएसी) के जवान और विभाग के तमाम लोग अपनी सेवाएं देते हैं।

कतर्नियाघाट अधिक से अधिक संसाधन देने की कोशिशें जारी हैं

बधावन कहते हैं, ‘‘पहले तो यह एक छोटा सा प्रयास था लेकिन बाद में लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया।’’ दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के क्षेत्र निदेशक बी. प्रभाकर ने कहा, ‘‘मोगली स्कूलों को और अधिक से अधिक संसाधन देने की कोशिशें जारी हैं। इन स्कूलों को हम जितना सफल बना सकेंगे, यहां के बच्चे उतना शिक्षा के साथ जंगल को भी समझेंगे। आगे चलकर यही बच्चे जंगल के संरक्षण में अहम भूमिका निभाएंगे।’’

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