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10 मार्च 1922: महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर चलाया देशद्रोह का मुकदमा, छह साल की जेल की सजा सुनाई

नई दिल्ली। 1919 में महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के रोलैट एक्ट के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया था। लेकिन आंदोलन हिंसक होने के बाद गांधीजी ने इस आंदोलन को तो खत्म कर दिया था, लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें 10 मार्च 1922 को गिरफ्तार करके उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया था और महज 8 दिनों में 18 मार्च 1922 को ही उन्हें इसके लिए छह साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी।

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने भारत में प्रेस पर पाबंदी लगा दी थी। किसी को भी बिना जांच के कारावास में डाला दिया जा रहा था और अंग्रेजों द्वारा वही प्रावधान रोलैट एक्ट के जरिए भारत में हमेशा के लिए लागू करने की तैयारी शुरू कर दी, जिससे पूरे देश में रोष फैल गया था। मार्च 1919 में जब अंग्रेजों ने रोलैट एक्ट पारित किया गया तो गांधी जी के नेतृत्व में देशभर में लोगों ने इस दमनकारी कानून के खिलाफत शुरू कर दी। 19 अप्रैल को जलियांवाला बाग नरसंहार हुआ तो देश भर में अंग्रेजों के खिलाफ आक्रोश भर गया। इसके बाद देशव्यापी असहयोग आंदोलन शुरू करने की तैयारी होने लगी।

विरोध एक आंदोलन के रूप में देश भर में फैल गया। छात्रों ने स्कूल और कॉलेज जाने से इनकार कर दिया। देश भर में हड़तालें शुरू हो गईं।

इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया था। फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी चौरा में किसानों के समूह ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी। इसमें कई पुलिस कर्मी मारे गए, जिससे गांधीजी इस घटना से बहुत दुखी हुए और आंदोलन के इस हिंसात्म स्वरूप को सिरे से खारिज कर आंदोलन खत्म करने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि किसी भी आंदोलन की सफलता की नींव हिंसा पर नहीं रखी जा सकती।

गिरफ्तारी और सजा
असहयोग आंदोलन खत्म ही अंग्रेजों को मौका मिल गया। 10 मार्च 1922 को गांधीजी को गिरफ़्तार किया गया। अंग्रेजों ने गांधीजी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया। मुकदमे की सुनवाई कर रह न्यायाधीश ब्रूम फील्ड ने 18  मार्च 1922 को गांधीजी को राजद्रोह के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा सुनाई।

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