कहते हैं कि जब कोई कुछ कर गुजरने का सोच लेता है, तो कायनात भी उसे मुकाम हासिल करा देती है। अब रविकांत और उसके परिवार के अलावा किसने सोचा होगा कि पानी पुरी के ठेले पर पिता की मदद करने वाला रविकांत एयरफोर्स में पायलट बन जाएगा। लेकिन ये सच हो गया है। कभी नीमच जिले के मनासा में द्वारकापुरी धर्मशाला के सामने पानी पुरी का ठेला लगाने वाले देवेंद्र चौधरी का बेटा रविकांत पायलट बन गया।
रविकांत ने पायलट बनने का सपना देखा था, जिसे वो पिता के साथ ठेले पर पानी पुरी बेचकर साकार करने में लगा था। रविकांत पढ़ाई के साथ पिता की मदद कर रहा था। उसकी लगन और मेहनत अब रंग लाई है। महज 21 साल के रविकांत का भारतीय वायुसेना में पायलट के लिए चयन हुआ है। उन्होंने पहले ही अटेम्प्ट में Air Force Common Admission Test (AFCAT) क्लियर कर लिया। रविकांत की उपलब्धि से मनासा गौरवान्वित हो रहा है।
रविकांत के कठिन परिश्रम के साथ-साथ पिता ने हर तरीके से सपोर्ट किया। आर्थिक तंगी के बावजूद देवेंद्र ने बेटे की परवरिश और पढ़ाई में कसर नहीं छोड़ी। कोविड में लोगों को खाने को खाना नहीं मिल रहा था, तब देवेंद्र का ठेला भी बंद हो गया था। ऐसे में पिता ने जैसे-तैसे कर्ज लेकर बेटे को पढ़ाया और इस मुकाम तक पहुंचाया।
रविकांत चौधरी ने बताया कि नीमच छावनी है। यहां CRPF का बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है। उसी को देखते हुए देश सेवा का जज्बा मन में जागा। जब 10th में था, तब इस फील्ड में आने का सोचा और जानकारी जुटाना शुरू की। इसके बाद मन में कुछ करने की सोच, देश सेवा के लिए CRPF और आर्मी को छोड़ वायुसेना को चुना।
12th पास करने के बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी की प्रतियोगी परीक्षा दी, जिसमें कई बार नाकाम हुआ, फिर भी हिम्मत नहीं हारी। देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह ने हौसला दिया। माता-पिता का भी सपोर्ट मिला। बिना कोचिंग के घर पर ही इंटरनेट की मदद से पढ़ाई की। चार साल की मेहनत के बाद एयरफोर्स में पहले ही अटेम्प्ट में सिलेक्शन हो गया।
रविकांत चौधरी ने बताया कि नीमच छावनी है। यहां CRPF का बड़ा ट्रेनिंग सेंटर है। उसी को देखते हुए देश सेवा का जज्बा मन में जागा। जब 10th में था, तब इस फील्ड में आने का सोचा और जानकारी जुटाना शुरू की। इसके बाद मन में कुछ करने की सोच, देश सेवा के लिए CRPF और आर्मी को छोड़ वायुसेना को चुना।
12th पास करने के बाद नेशनल डिफेंस एकेडमी की प्रतियोगी परीक्षा दी, जिसमें कई बार नाकाम हुआ, फिर भी हिम्मत नहीं हारी। देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह ने हौसला दिया। माता-पिता का भी सपोर्ट मिला। बिना कोचिंग के घर पर ही इंटरनेट की मदद से पढ़ाई की। चार साल की मेहनत के बाद एयरफोर्स में पहले ही अटेम्प्ट में सिलेक्शन हो गया।