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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, आपराधिक मामलों में जनप्रतिनिधि आम आदमी से अलग नहीं

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि लॉ मेकर्स (कानून बनाने वाले यानी सांसद/विधायक) को मिला हुआ विशेषाधिकार क्रिमिनल केस से बचने का रास्ता नहीं हो सकता है। यह आम लोगों के साथ विश्वासघात होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है संपत्ति को नुकसान पहुंचाना विधानसभा में बोलने की स्वतंत्रता के दायरे में नहीं हो सकती। अदालत ने कहा कि संसद व विधानसभा में अभिव्यक्ति की आजादी संविधान के दायरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने केरल विधानसभा में हुए हंगामे के मामले में आरोपी बनाए गए एलडीएफ के 6 सदस्यों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने की केरल सरकार की अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है।

क्रिमिनल केस में सभी नागरिक समान

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि क्रिमिनल लॉ में जो कानून तय है उसके दायरे में ही एमएलए को अपना व्यवहार रखना होगा। विशेषाधिकार और इम्युनिटी के नाम पर कानून से ऊपर होने का दावा नहीं किया जा सकता है। सभी नागरिकों पर क्रिमिनल लॉ समान रूप से अप्लाई होता है। क्रिमिनल केस में सभी नागरिक समान हैं और सदन के सदस्यों को विशेषाधिकार और इम्युनिटी के कारण क्रिमिनल केस के मामले में आम आदमी से ऊंचे पायदान पर नहीं रखा जा सकता है।

तो आम लोगों के साथ होगा विश्वासघात

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में जो जनरल कानून है, विशेषाधिकार और इम्युनिटी उससे बचने का रास्ता नहीं है। क्रिमिनल लॉ सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होता है। लॉ मेकर को विशेषाधिकार के नाम पर क्रिमिनल लॉ से बचाव आम लोगों के विश्वास के साथ धोखा होगा। जहां तक अनुच्छेद-194 के प्रावधान का सवाल है तो इस मामले में गलत तरीके से उसे परिभाषित कर सीआरपीसी की धारा-321 के तहत केस वापस लेने की गुहार लगाई गई। सरकारी वकील ने जो इस मामले को समझा उससे मैसेज जाता है कि विशेषाधिकार के कारण इन एमएलए पर केस नहीं चल सकता जबकि ऐसी सोच और समझ संविधान के प्रावधान के साथ धोखा होगा और ये गलत धारणा है कि लॉ मेकर्स जनरल क्रिमिनल लॉ से ऊपर हैं।

अभिव्यक्तिका अधिकार संविधान के दायरे में

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद 194 (2) के तहत प्रा‌वधान है कि सदन के सदस्य को इम्युनिटी (प्रतिरक्षा) मिली हुई है कि वह सदन में अपनी विचार अभिव्यक्ति बिना किसी डर के कर सकते हैं। यहां संविधान बनाने वालों की मंशा यह नहीं थी कि अभिव्यक्ति की जो आजादी दी गई है उसमें विरोध की आड़ में क्रिमिनल ऐक्ट भी शामिल हो जाएं।

यह था मामला

केरल विधानसभा में 13 मार्च 2015 को बजट भाषण के दौरान उस समय विरोधी पार्टी एलडीएफ के 6 सदस्य स्पीकर के डायस पर चढ़ गए और व्यवधान डाला। आरोप है कि उन्होंने फर्नीचर तोड़े। स्पीकर के चेयर, कंप्यूटर और और माइक को तोड़ दिया। इस कारण विधानसभा में सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ था। विधानसभा के सेक्रेटरी ने तिरुवनंतपुरम में थाने में शिकायत दी और आरोपी सदस्यों के खिलाफ सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और आईपीसी के तहत केस दर्ज किया गया। बाद में अभियोजन पक्ष ने चीफ जूडिशियल मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में केस वापस लेने की अर्जी दाखिल की जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दी।

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