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वन अधिकार पत्र मिला तो बदल गई सीताराम की तकदीर

रतलाम। गरीबी एक ऐसा कुचक्र है जिसमें न केवल परिवार, बल्कि उसकी पीढियां भी शिकार होकर इसे नियति मानकर समझौता कर लेती है। ऐसी ही कहानी है आदिवासी सीताराम पिता श्री कमजी मईडा की, जिन्होंने अपने परिश्रम और शासन की योजनाओं की मदद से न केवल दरिद्रता की कमर तोड़ी बल्कि अब निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।

विकासखण्ड सैलाना की ग्राम पंचायत बल्लीखेडा के ग्राम आमलिया डोलकला निवासी सीताराम का जन्म एक अत्यंत निर्धन आदिवासी परिवार में हुआ था। परिवार की स्थितियां ऐसी नहीं थी कि वे कुछ पढ़-लिख पाते। सीताराम के परिवार में पत्नी, 3 बालक और 1 बालिका है। निर्धनता और अभाव से जूझते व परिवार की जिम्मेदारियां बढ़ने से सीताराम की हिम्मत जवाब दे गई और अंततः मजबूर होकर दूसरों के खेतों पर मजदूरी करने लगा। जीवन में संघर्ष जैसे खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। सीताराम की भूमि क्षैत्रफल 0.150 भूमि पर खेती के साथ वन भूमि पर थोड़ा बहुत अनाज उपजा लेता था। इसी बीच शासन द्वारा अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी अधिनियम 2006 द्वारा निर्धन आदिवासी वर्ग को वन भूमि पर मान्यता देते हुए उन्हें भू-अधिकार पत्र दिए जाने लगे, तब सीताराम ने भी अपने पूर्वजों की जमीन को प्राप्त करने के लिये आदिवासी विकास विभाग को विधिवत आवेदन और उपयुक्त दस्तावेज दिये जिससे सीताराम को वन अधिकार पत्र प्राप्त हो गया।

अब शासकीय योजनाओं की मदद और सीताराम के निरंतर परिश्रम की जुगलबंदी से न केवल इनका जीवन स्तर सुधर रहा है बल्कि दूसरों की भूमि पर फसल लेने के साथ ही फलदार वृक्ष भी पाल पोस कर बड़ा कर रहे है जिससे इन्हें पीढ़ी-दर-पीढी निरंतर आय प्राप्त होती रहेगी। निर्धन आदिवासी सीताराम का परिवार आज निरंतर समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। इसके लिए वो मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को धन्यवाद देते है।

अर्चित अरविन्द डांगी { मध्यप्रदेश, रतलाम }

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