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Jitiya Vrat: आज जितिया व्रत, ऐसे कर सकते हैं पूजा, जानें त्योहार से जुड़ी अहम जानकारियां

Jitiya Vrat

Jitiya Vrat 2023: आज आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में जितिया व्रत रखा जाएगा। व्रत को मां संतान प्राप्ति या संतान की दीर्घायु के लिए रखती हैं। यह निर्जला उपवास होता है। मान्यता है कि कि व्रत को रखने से मेधावी और तेजस्वी संतान जन्म लेती है। जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat) के नाम से भी जाना जाता है।

Jitiya Vrat: पंचांग के मुताबिक आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर 6 अक्टूबर यानी शुक्रवार को जितिया व्रत है। अष्टमी तिथि 6:34 बजे से शुरू होकर 7 अक्टूबर की सुबह 8:8 बजे समाप्त होगी। 5 अक्टूबर को नहाय खाय (Nahay Khay) था। मान्यतानुसार, जितिया व्रत के दिन भगवान जीवितवाहन की पूजा होती है। इस दिन प्रदोष काल में पूजा करना अधिक शुभ माना जाता है। सुबह उठकर स्नान के बाद महिलाएं स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं।

पूजा विधि (Jitiya Vrat Puja Vidhi)
Jitiya Vrat: पूजा के लिए भगवान जीमूतवाहन की कुशा से बनाई गई प्रतिमा को आसन पर रखा जाता है। भगवान की प्रतिमा के सामने धूप, दीप, फल और फूल आदि अर्पित किए जाते हैं। गाय के गोबर से लीपकर सियारिन और चील बनाए जाते हैं। प्रतिमा पर लाल सिंदूर से टीका लगाया जाता है। पूजा (Jitiya Vrat Puja) करने के बाद भगवान जीमूतवाहन और जितिया व्रत की कथा सुनी जाती है।

महत्वपूर्ण समय
अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि की शुरुआत: 6 अक्टूबर, सुबह 06.34
अश्विन कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त: 7 अक्टूबर, सुबह 08.08
सुबह पूजा मुहूर्त सुबह 7.45- सुबह 10.41
शाम पूजा मुहूर्त शाम 4.34- शाम 06.02
सूर्य अर्घ्य सुबह 6.17 (7 अक्टूबर)
व्रत पारण समय सुबह 8.08 के बाद (7 अक्टूबर)
सर्वार्थ सिद्धि योग 6 अक्टूबर, रात 9.32-7 अक्टूबर की सुबह 06.17
परिघ योग 6 अक्टूबर, सुबह 5.23 – 7 अक्टूबर की सुबह 05.31

जितिया व्रत की कथा (Jitiya Vrat Katha)
Jitiya Vrat: मान्यताओं के अनुसार महाभारत युद्ध के समय द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई तो इसका बदला लेने के लिए उनके बेटे अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया। इससे अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की संतान को फिर जीवित किया। इसके बाद उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया, तब से संतान की लंबी आयु के लिए माताएं जितिया व्रत करने लगीं।

व्रत की चील और सियारिन की कथा
Jitiya Vrat: पौराणिक कथा के मुताबिक एक पेड़ पर चील और सियारिन रहती थी। दोनों की खूब बनती थी। चील और सियारिन एक-दूसरे के लिए खाने का हिस्सा जरूर रखती थीं। एक दिन गांव की औरतें जितिया व्रत की तैयारी कर रही थीं। उन्हें देखकर चील का मन व्रत करने का किया। चील ने सियारिन को जाकर पूरी बात बताई।

दोनों ने तय किया कि वो भी जितिया व्रत रखेंगी, लेकिन अगले दिन दोनों ने व्रत रखा तो सियारिन को भूख और प्यास लगने लगी। सियारिन भूख से व्याकुल होकर घूमने लगी। व्रत के दिन गांव में किसी की मौत हो गई यह देखकर सियारिन के मुंह में पानी आया। सियारिन ने अधजले शव को खाकर भूख मिटाया। वह भूल गई उसने जितिया व्रत रखा है। चील ने पूरी निष्ठा और मन से जितिया व्रत और पारण किया।

भगवान जीऊतवाहन की कथा
चील और सियारिन ने अगले जन्म में सगी बहन बनकर राजा के घर में जन्म लिया। चील बड़ी बहन बनीं और सियारिन छोटी बहन। इनका विवाह राजा के घर में हुआ। चील ने सात बेटों को जन्म दिया। सियारिन के बच्चे जन्म लेते मर जाते थे। ऐसे में बहन को सुखी और खुश देखकर सियारिन जलने लगी और उसने चील के सातों बेटों का मरवा दिया। सियारिन के सातों बेटों के सिर कटवाकर उसने उन्हें चील के घर भिजवाया

यह देखकर भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उस पर अमृत छिड़कर उन्हें जीवित किया। वहीं, जो कटे सिर सियारिन ने भेजे थे वो सब फल में बदल गए। बहन से रोने की आवाज न सुनकर सियारिन व्याकुल हो उठीं और वहां सारा माजरा जानने पहुंच गई। सियारिन सभी बातें चील को बताई। कहते हैं कि तब चील ने उसे पिछले जन्म की सारी बातें बताईं और ये सब सुनकर सियारिन को गलती का पश्चाताप होने लगा।

चील सियारिन को उसी पेड़ के पास ले गई और भगवान जीऊतवाहन की कृपा से उसे सारी बातें याद आ गईं। इससे सियारिन इतनी दुखी हुई कि उसकी मौत उसी पेड़ के पास हो गई। राजा को जब इसकी जानकारी मिली, तब उन्होंने सियारिन का दाह संस्कार उसी पेड़ के पास कराया।

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