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क्या आप जानते हैं तीन पत्ते वाले बरगद के पेड़ का रहस्य ?

क्या आप जानते हैं तीन पत्ते वाले बरगद के पेड़ का रहस्य

महाभारत काल का यह बरगद आज भी उसी प्रकार से बना हुआ है जैसे तब था न बढ़ता है न घटता है

मृदुभाषी – जब भी तीन पत्ते वाले बरगद के पेड़ का जिक्र आता है तो महाभारत का प्रसंग जरूर उठता है क्यूंकी तीन पत्ती वाले बरगद के पेड़ की कहानी महाभारत से ही जुड़ी है आईए जानते है इस बरगद के पेड़ के बारें में

यह बरगद का वह पेड़ है जो 7000 साल से आज तक ऐसा ही है इस पेड़ पर सिर्फ तीन पत्ते आते हैं जबकि बरगद का पेड़ बहुत विशाल होता है इस पेड़ का तना आज तक 1 इंच से ज्यादा नहीं हुआ और तीन पत्ते के अलावा चौथा पत्ता नहीं आया और यह तीन पत्ते ब्रह्मा विष्णु महेश के संकेत है।

यह पेड सूरत के पास तापी नदी पर स्थित है यह महाभारत के योद्धा अंगराज कर्ण की समाधि है । अब आप सोच रहे होंगे कि युद्ध तो कुरुक्षेत्र हरियाणा में हुआ था तो कर्ण को समाधि सूरत में क्यों दी गई। इसके पीछे कर्ण द्वारा मांगा गया वह वरदान था जिसे भगवान कृष्ण ने पूरा किया जब कर्ण ने कवच और कुंडल इंद्र को दान किए थे तब इंद्र से एक शक्ति बांण और एक वरदान मांगा था कि मैं अधर्म का साथ दे रहा हूं इसलिए मेरी मृत्यु निश्चित है परंतु मेरा अंतिम संस्कार कुंवारी जमीन पर किया जाए अर्थात जहां पहले किसी का अंतिम संस्कार ना किया गया हो

युद्ध में अर्जुन के हाथों जब कर्ण का वध हुआ तो कृष्णा ने पांचों पांडवों को बताया कि ये तुम्हारे बड़े भाई है इनकी अंतिम इच्छा थी कि इनका अंतिम संस्कार कुंवारी जमीन पर किया जाए और मेरी दृष्टि में इस पृथ्वी पर सिर्फ एक ही जगह ही तापी नदी के पास नजर आ रही है तब इंद्र ने अपना रथ भेजा कृष्ण पांचो पांडव और कर्ण के शरीर को आकाश मार्ग से तापी नदी के पास लाए यहां भगवान कृष्ण ने उस ऐक इंच जमीन पर अपना अमुक बांण छोड़ा बांण के ऊपर कर्ण का अंतिम संस्कार हुआ।

कृष्ण ने कहा था कि युगो युगांतर तक इस जगह ऐक बरगद का पेड़ रहेगा जिस पर मात्र तीन पत्ते ही आयेगें तब से आज तक इस बरगद के पेड़ पर चौथा पत्ता नही आया और ना ये ऐक इंच से ज्यादा चोड़ा हुआ!! यहां कर्ण का मंदिर बना हुआ है जहाँ हजारो श्रद्धालू अपनी मनोकामनाए लिए आते हैं जो पूरी भी होती हैं। आइए ऐसे अद्धभुत अतुलनिय दिव्य अलौकिक स्थान की जानकारी ज्यादा से ज्यादा शेयर करें।

तीन पत्ते से ज्यादा नहीं बढ़ा यह पेड़
इस मंदिर को तुलसी बाड़ी मंदिर कहा जाता है। यहां तीन पत्ता बड़ का मंदिर भी है। यहां बरगद का एक पेड़ है जिसके बारे में लोगों की मान्यता है कि इसकी उम्र हजारों साल की है, लेकिन इसमें आज तक केवल तीन ही पत्ते आए हैं। तीनों पत्ते सदाबहार रहते हैं, ये आज भी हरे-भरे हैं। लेकिन इसमें कभी कोई नया पत्ता नहीं आता।

इस बड़ (बरगद) को घेरकर एक मंदिर बना दिया गया है जहां आसपास के लोग दर्शन के लिए आते हैं। अमावस और पूर्णिमा को यहां आने वाले श्रद्धालुओं-दर्शकों की संख्या बहुत बढ़ जाती है। ताप्ती नदी के किनारे तीन पत्ते बड़ वाला यह मंदिर लोगों की आस्था का बड़ा केंद्र है।

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