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देशभर में पचास से अधिक स्थानों पर हैं दादाजी के दरबार

देशभर में पचास से अधिक स्थानों पर हैं दादाजी के दरबार

खंडवा में गुरु पूर्णिमा पर दादाजी दरबार में आएंगे लाखों भक्त, पूरा शहर करता है मेजबानी

खंडवा। भारत की आध्यात्मिक राजधानी कहे जाने वाले खंडवा में गुरु पूर्णिमा पर्व जोर-शोर से मनाने की तैयारियां आरंभ हो चुकी हंै। खंडवा के अतिरिक्त देशभर में करीब पचास से अधिक स्थानों पर दादाजी के दरबार हंै। मध्यप्रदेश के दक्षिणी छोर पर इस पुरातन नगर में बीसवीं सदी के महान संत श्री दादाजी धूनीवाले अर्थात स्वामी केशवानंदजी महाराज की मूल समाधि है, इसी स्थान को दादाजी दरबार कहते हैं।

यहां गुरु-शिष्य अर्थात छोटे दादाजी हरिहर भोले भगवान की समाधि भी पूरी मर्यादा के साथ है। करीब पांच लाख भक्त यहां देशभर से समाधि पर मत्था टेंकने और आशीर्वाद लेने के लिए खंडवा आते है। संभवत: यह अनोखा शहर है, जबकि यहां हजारों लाखों की तादाद में भीड़ आने पर यहां के व्यापारी, दुकानदार, होटल, टैक्सी, रेस्टारेंट वाले व्यापार करने की बजाय अपना कारोबार बंद रखकर आने वाले भक्तों की सेवा में जुट जाते हंै।

देशभर में पचास से अधिक स्थानों पर हैं दादाजी के दरबार
देशभर में पचास से अधिक स्थानों पर हैं दादाजी के दरबार

भोजन प्रसादी की भरपूर सुविधा

खंडवा से हर दिशा में करीब सौ किमी दूर से ही ग्रामीण अंचलों में सड़क किनारे पैदल अथवा वाहनों से गुजरने वाले दादाजी भक्तों के लिए भंडारे लगना शुरू हो जाते हैं। खंडवा प्रवेश के साथ ही रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड, सभी प्रमुख मार्गों पर जलपान, भोजन प्रसादी की भरपूर सुविधा होती है। सैकड़ों स्टॉल पर हजारों स्वयं सेवक अपने सामर्थ्य अनुसार भक्तोंकी सेवा जुनून की हद तक करते हंै। लजीज व्यंजनों की फेहरिस्त है। पोहा, जलेबी, समोसा, मिठाइयां, हलुआ, मालपुआ, पावभाजी, छोला भटूरा, गुलाब जामुन, दाल-बाटी, पुड़ी-सब्जी से लेकर ऐसा कोई व्यंजन नहीं जो यहां दादाजी भक्तों के लिए परोसा न जाता हो।

धर्मशालाओं में नि:शुल्क ठहरने की व्यवस्था

शहर की पचास से अधिक धर्मशालाओं में नि:शुल्क ठहरने की व्यवस्था होती है तो सैकड़ों टेक्सी चालक स्टेशन से दादा दरबार तक अपनी तरफ से निशुल्क भक्तों को दादाजी दरबार पहुंचाते हैं। खंडवा का मानना है कि अतिथि देव है, दादाजी भक्तों की सेवा में कोई कार्य किया तो यह सेवा दादाजी की सेवा ही है। जिला प्रशासन, आरटीओ, बैंकें, एलआईसी, जिला सहकारी बैंक, पावरग्रिड से लेकर कई विभागों के अधिकारी-कर्मचारी अपने स्तर पर सेवाएं देते हंै, स्टॉल लगता है।

दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र से लेकर प्रदेशभर से दादाजी भक्त यहां आते हैं। सैकड़ों-हजारों भक्त तो पदयात्रा करते हुए हाथ में निशान ध्वज को लेकर -ढोल ताषे, भजन कीर्तन करते हुए अपने दलबल के साथ आते हंै। भज लो दादाजी का नाम, भज लो हरिहरजी का नाम का जाप करते हुए भक्त यहां आते हंै। दादाजी दरबार में निशान भेंट करने की परंपरा भी बरसों पुरानी है।

कौन हैं दादाजी धूनीवाले

बीसवीं सदी के संतों में शिर्डी के सांई बाबा, सैगांव के गजानंद महाराज, मुंबई के हाजीअली, नागपुर के ताजुद्दीन बाबा के समकालीन दादाजी धूनीवाले अर्थात स्वामी केशवानंदजी महाराज को माना गया है। भक्त इन्हें भगवान शंकर का अवतार मानकर पूजा करते हंै। दादाजी यहां 1930 दिसंबर माह में खंडवा आए एवं यहां समाधि ली। इसी तरह छोटे दादाजी हरिहर भोले भगवान भी यहां दादाजी के साथ आए और 1942 में उन्होंने भी समाधि ले ली। दोनों संतों की जीवंत, जागृत समाधि यहां खंडवा में है।

समाधि अर्थात जहां समाधान मिले। कहते है समाधि अर्थात जहां समाधान मिले। दादाजी दरबार में लोग अर्जी लगाते हंै। बिना बोले दादाजी -शंकाओं का समाधान कर देते हंै। यहां सच्ची श्रद्धा से आने वाले की हर इच्छा पूर्ण होती है। दादाजी के हजारों भक्त हंै जिनके अपने अनुभव है। यहां भक्तों को प्रसाद के रूप में मोटी रोटी दी जाती है, जिसे टिक्कड़ कहते हंै।

अखंड धूनी का स्थान

खंडवा के दादाजी दरबार में बड़े दादाजी द्वारा प्रज्जवलित अखंड धूनी है। संभवत: यह देश में किसी भी स्थान पर बनी सबसे बड़ी धूनी है, जहां खासोआम, भक्त स्वयं अपने हाथों से हवन कर सकता है, आहुति डाल सकता है। यह धूनी साल 1930 से लगातार प्रज्ज्वलित है। इसी तरह यहां अखंड ज्योति भी है।

देशभर में कई जगह है दरबार

दादाजी की मूल समाधि खंडवा में है। खंडवा के अतिरिक्त देशभर में करीब पचास से अधिक स्थानों पर दादाजी के दरबार हंै, जिनमें दिल्ली, श्रीगंगानगर, कोटा, रेसरी, जोधपुर, जबलपुर, आवलीघाट, खोकसर, साईखेड़ा, छिपानेर, होशंगाबाद, बैतूल, छिंदवाड़ा, इंदौर, बड़वाह, भोपाल, जलगांव, पुणे, नीमगांव, सांघवी इत्यादि शामिल हैं।

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