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Vaikuntha Chaturdash 2021: बैकुंठ चतुर्दशी को 14 दीपों के दान से मिलता है ऐसा वरदान

Vaikuntha Chaturdash 2021: सनातन संस्कृति में बैकुंठ चतुर्दशी का बड़ा महत्व है। मान्यता है कि भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी को योगनिद्रा से जागते हैं और इस दिन कैलाशपति शिव श्रीहरी को सृष्टी का राजपाठ सौंपते हैं। महादेव भगवान विष्णु को राजपाठ सौंपकर कैलाश पर्वत पर तपस्या के लिए चले जाते हैं।

श्रीहरि ने किया था महादेव का पूजन

एक कथा के अनुसार एक बार श्रीहरि देवाधिदेव महादेव का पूजन करने काशी पधारे और वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने 1,000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प लिया। पूजा के समय भोलेनाथ ने विष्णुजी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प कम कर दिया। एक कमल पुष्प की कमी को दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी आंख को समर्पित करने का निश्चय किया। उसी समय महादेव प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि हे विष्णु! सृष्टि में तुम्हारे समान दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी। इस तिथि को जो मनुष्य भक्तिभाव से आपका पूजन करेगा, वह बैकुंठवासी होगा।

इस तिथि को है दीपदान की परंपरा

बैकुंठ चतुर्दशी पर भगवान विष्‍णु और भगवान भोलेनाथ दोनों के पूजन का महत्व है। निर्णय सिंधु के अनुसार इस दिन जो मनुष्य 1,000 कमल पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजा के पश्चात महादेव की पूजा करता है। वह बैकुंठ धाम का वासी होता है। पुरुषार्थ चिंतामणि के अनुसार इस तिथि को कैलाशपति शिव ने श्रीहरि को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। इस दिन सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीप के दान की परंपरा है।

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