Mradhubhashi
Search
Close this search box.

जानिए क्यों दिया था श्रीगणेश ने देवी तुलसी को श्राप

सभी वनस्पतियों में तुलसीदल का विशेष महत्व है। सभी धार्मिक कर्मकाण्ड और पूजा-पाठ में तुलसी का उपयोग किया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण को तुलसी अतिप्रिय है। लेकिन प्रथम पूज्य श्रीगणेश को तुलसी दल चढ़ाने का शास्त्रों में निषेध बतलाया गया है।

श्रीहरी से होता है तुलसीजी का विवाह

देवी तुलसी को दैत्य की पत्नी होने के बावजूद सनातन संस्कृति में बड़ा सम्मान दिया गया है। देवउठनी एकादशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम रूप का तुलसी से विवाह किया जाता है, लेकिन पवित्र और पूज्यनीय तुलसी को श्रीगणेश को चढ़ाने का निषेध है। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक धर्मात्मज नाम का राजा था। राजा की कन्या का नाम तुलसी था।

तुलसीजी श्रीगणेश के रूप पर हुई थी मोहित

कन्या तुलसी उस समय अपनी युवावस्था मे थी और विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली थी। तीर्थाटन के दौरान तुलसी को गंगा किनारे तप करते हुए गणेश जी दिखाई दिए। उस समय श्रीगणेश रत्न जड़ीत सिंहासन पर विराजमान थे। उनके अंगों पर सुगंधित चंदन का लेप लगा हुआ था। गले में उनके रत्नों की माला जगमगा रही थी। कमर पर गजानन के रेशम का पीताम्बर था। उनके इस मोहक रूप को देख माता तुलसी मोहित हो गई और गणेश जी से विवाह का निश्चय कर लिया।

श्रीगणेश ने दिया था तुलसी को श्राप

तुलसी जी ने श्रीगणेश की तपस्या भंग कर उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। तपस्या भंग होने से नाराज होकर भगवान गणेश ने तुलसीजी के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया और कहा कि वह ब्रह्माचारी हैं। नाराज होकर माता तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया और कहा कि उनके दो विवाह होंगे। इस पर श्रीगणेश ने तुलसीजी को श्राप दिया कि उनका असुर शंखचूर्ण यानी जलंधर से होगा। गणपतिजी का श्राप सुनकर तुलसीजी ने उनसे माफी मांगी।

तुलसी को मिला मोक्षदायिनी का वरदान

तुलसीजी के माफी मांगने पर श्रीगणेश ने कहा कि भगवान श्रीहरी और श्रीकृष्ण की प्रिय होने के कारण कलयुग में जगत को जीवन और मोक्ष देने प्रदान करने वाली होंगी, किंतु मेरी पूजा में तुम्हें (तुलसी) चढ़ाना अशुभ फलदायी होगा। उसी दिन से भगवान गणेश की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती है।

ये भी पढ़ें...
क्रिकेट लाइव स्कोर
स्टॉक मार्केट