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9 मंत्र जो प्रत्येक सनातनी को कंठस्थ करने चाहिए

कुछ मंत्र जो प्रत्येक सनातनी को कंठस्थ करने चाहिए

मंत्र : हिन्दू धर्म में हर देवता की आराधना और पूजन के लिए अलग -अलग मंत्र है , आज के समय में हर व्यक्ति पुराने समय की तरह वेद और दहरम का ज्ञान भी नहीं रखता है , जितनी व्यक्ती को जरूरत है उतना ही वो जनता है बस , लेकिन इस घोर कलयुग में सनातन धर्म जातक को यह महत्वपूर्ण मंत्र निश्चित ही कंठस्थ होने चाहिए

गणपति मंत्र

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

भावार्थ: घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर काय, करोड़ सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली।
मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें (करने की कृपा करें)॥

गायत्री मंत्र

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्॥

बुद्धि को निर्मल, पवित्र एवं उत्कृष्ट बनाने का महामंत्र है गायत्री मंत्र. गायत्री माता का आंचल श्रद्धापूर्वक पकड़ने वाला जीवन में कभी निराश नही रहता. गायत्री उपासना का अर्थ है सत्प्रेरणा को इतनी प्रबल बनाना कि सन्मार्ग पर चले बिना रहा ही न जा सके

महामृत्युंजय मंत्र

ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ ॥

हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन -पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म -मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें।  जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म -मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें ।

हनुमान मंत्र

ॐ नमो हनुमते भय भंजनाय सुखम् कुरु फट् स्वाहा ||

हरिविष्णु मंत्र

शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् । लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्देविष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥

मैं भगवान विष्णु को नमन करता हूं जो इस सृष्टि के पालक और रक्षक हैं, जो शांतिपूर्ण हैं, जो विशाल सर्प के ऊपर लेटे हुए हैं, जिनकी नाभि से कमल का फूल निकला हुआ है, जो ब्रह्मांड का सृजन करता है,जो एक परमात्मा हैं, जो पूरी सृष्टि को चलाने वाले हैं, जो सर्वव्यापी हैं जो बादलों की तरह सांवले हैं जिनकी आंखें कमल के समान है,वहीं समस्त संपत्तियों के स्वामी हैं, योगी जन उनको समझने के लिए ध्यान करते हैं, वह इस संसार से भय का नाश करने वाले हैं,सब लोगों के स्वामी भगवान विष्णु को मेरा नमस्कार।

देवी सरस्वती मंत्र

यादेवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै-नमस्तस्यै,नमस्तस्यै नमो नम:॥

भावार्थ: अपने हस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्य का नाश करने वाली महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती जो प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है।

श्रीराम मंत्र

राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे । सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥

भावार्थ: शिव पार्वती से बोलो – हे सुमुखी! राम का नाम ‘विष्णु सहस्रनाम’ के समान है। मैं हमेशा राम के स्थान पर और राम के नाम पर हूं।

गुरु मंत्र

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥

भावार्थ: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु हि शंकर है; गुरु हि साक्षात् परब्रह्म(परमगुरु) है; उन सद्गुरु को प्रणाम.

श्रीकृष्ण मंत्र

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः।।

मंत्र का अर्थ होता है कि हे कृष्ण भगवान हम आपकी शरण में हैं। हे श्रीहरि, हे वासुदेव, हे परमात्मा, हे हरि गोविंद आपको बार बार नमस्कार आप हमारे कष्टो का नाश करके हमे सुख प्रदान करें।

इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है. विभिन्स माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं. हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें. इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी. ”  

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