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Shankh: अमृत मंथन से निकला और शुभ-समृद्धि का प्रदाता है शंख

Shankh: सनातन संस्कृति के शास्त्रों में कुछ वस्तुओं का विशेष महत्व बतलाया गया है। इन वस्तुओं के घर में रखने और पूजा करने से घर से अशुभ फलों का प्रभाव दूर होता है और शुभ फलों की प्राप्ति होती है। ऐसी ही एक शुभ वस्तु शंख है, जिसको घर में रखकर पूजा करने से कई विकारों से मुक्ति पा सकते हैं।

अमृत मंथन से निकला है शंख

शास्रों में शंख को चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवतुल्य माना गया है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि शंख के मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा ,अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास रहता है। शंख में जल या पंचामृत भरकर श्रीकृष्ण या देवी लक्ष्मी का अभिषेक करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शंख की उत्पत्ति समुद्र से मानी गई है। मान्यता है कि अमृत मंथन के समय देव- दानव संग्राम के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई थी। इसमें आठवें रत्न के रूप में शंख निकला था।

देवतुल्य है शंख

शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह स्वयं के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में तैयार करता है। शंख धार्मिक स्वरूप में पूजनीय है तो वास्तु के अनुसार भी यह बहुत उपयोगी है। मानयता है कि जिस घर में प्रतिदिन शंखध्वनि होती है। उस घर में नकारात्मकता दूर होकर सकारात्मकता का संचार होता है। रोगों से मुक्ति मिलती है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। शंख के पूजन से समृद्धि की प्राप्ति होती है। शास्त्रानुसार श्रीकृष्ण का स्वरूप कहे जाने वाले मार्गशीर्ष मास में पंचजन्य शंख की पूजा का विशेष महत्त्व है।

कई प्रकार के होते हैं शंख

मुख्यत: शंख आकृति के आधार पर तीन प्रकार के होते दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख। जो शंख दाहिने हाथ में धारण किया जाता है वह दक्षिणावृत्ति शंख कहलाता है। मध्य भाग में खुला हुआ शंख मध्यावृत्ति शंख कहलाता है। जो शंख बाएं हाथ में धारण किया जाता है वह वामावृत्ति शंख कहलाता है। इस तरह दक्षिण दिशा की ओर उदर वाले शंख को दक्षिणावृत्त और बायीं ओर उदर वाले शंख को वामावृत्त शंख कहते हैं। इनके अलावा शंखों के लक्ष्मी शंख, गोमुखी शंख, कामधेनु शंख, विष्णु शंख, देव शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, गरुड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख आदि प्रकार होते हैं।

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