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Nainital में तीन तरफ से दरक रहीं पहाड़ियां, एक्सपर्ट्स ने बजाई खतरे की घंटी

देहरादून। किसी भी पहाड़ या शहर की एक भार क्षमता होती है। इंसान अगर उससे ज्यादा निर्माण करेगा या वजन बढ़ाएगा तो वह धंस जाएगी। यही हो रहा है नैनीताल के साथ। नैनीताल पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। वहां की पहाड़ियां तेजी से दरक रही हैं। उनसे गिरने वाले चूना पत्थर झीलों में जा रहे हैं। भूगर्भ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर नैनीताल में निर्माण कार्य रोके नहीं गए तो इस खूबसूरत पर्यटक शहर को बचा पाना मुश्किल होगा।

अंग्रेजों ने नैनीताल को बसाया था. साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर। यहां का हवा-पानी सेहत के हिसाब से बेहतरीन था। अंग्रेजों ने नैनीताल में आबादी तय कर रखी थी कि इससे ज्यादा जनसंख्या यहां नहीं होनी चाहिए। क्योंकि तब भी यह इलाका भूगर्भीय बदलावों के अनुसार संवेदनशील था. नैनीताल का मॉल रोड तो शुरूआत से ही काफी नाजुक इलाके पर बसा है. ऐसे में 1880 में आए विनाशकारी भूस्खलन की याद आती है।

एक्टिव हो गई है एक बड़ी फॉल्ट लाइन

प्रो. कोटलिया ने बाताया कि जब डीएसबी कॉलेज के पास बड़ा भूस्खलन हुआ था तभी अंदेशा था कि जो राजभवन से डीएसबी गेट से, यहां से ग्रैंड होटल और उसके आगे सात नंबर तक फॉल्ट लाइन एक्टिव हो गई है, तब भी मैंने मीडिया के जरिए अपनी बात रखी थी कि ये कमजोर जोन है। इसमें समस्या आ सकती है। ये भी बताया था कि डीएसबी गेट के ऊपर निर्माण ना करें। कैरिंग कैपेसिटी नहीं है, लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी। उसके बाद 2010 में नैनीताल जिला प्रशासन ने मुझे राजभवन पर एक रिपोर्ट देने की बात कही जो मैंने 2012 में सबमिट की। तब भी मैंने इस समस्या को उठाया था। ये फॉल्ट लाइन अब एक्टिव हो गई है। मैं पिछले दो तीन सालों से देख रहा हूं इसी वजह से मॉल रोड में सड़क धंसी थी। यह पूरा एक जोन है, जो लगातार दो तीन सालों से एक्टिव फॉल्ट जोन के ऊपर बना हुआ है। प्रशासन सबसे पहले मॉल रोड में निर्माण प्रतिबंधित करे। इस पूरे फाल्ट के किनारे कोई निर्माण न हो. सात नंबर में निर्माण बंद किया जाए। जहां पर 1880 का भूस्खलन आया था, वहां कोई निर्माण नहीं होना चाहिए। फिलहाल नैनीताल में निर्माण को पूरी तरह प्रतिबंधित कर देना चाहिए। न वैज्ञानिक कुछ कर सकते हैं, न ही सरकार। फॉल्ट लाइन की सक्रियता को रोकना किसी के बस में नहीं है। इसका एक ही इलाज है कि निर्माण कार्य रोककर वजन बढ़ने से रोका जाए। बलिया नाले के भूस्खलन को रोकने के लिए उत्तरकाशी में वरुणा व्रत पर्वत वाला तरीका अपनाना चाहिए। नहीं तो ये रुकने वाला नहीं है. प्रो. कोटलिया राष्ट्रीय भूविज्ञान अवॉर्ड प्राप्त कर चुके हैं।

सरकार मान चुकी कि नैनीताल अब और भार नहीं सह सकता

इतिहासकार डॉ. अजय रावत कहते हैं कि नैनीताल में सबसे बड़ा संकट है भूस्खलन का. सबसे पहला रिकॉर्डेड भूस्खलन नैनीताल में 1867 में हुआ था. उसके बाद यहां पर हिलसाइड सेफ्टी कमेटी बनी। 1880 में भयानक भूस्खलन आया। उसके बाद यहां पर 79 किलोमीटर लंबे नाले बनाए गए। नालों का मुख्य उद्देश्य था ड्रेनेज सिस्टम और बारिश के पानी को इनके जरिए बाहर निकाला जा सके, लेकिन दुर्भाग्य यह है यह जितने नाले हैं, जिन्हें हम लाइफ लाइन कहते हैं इसके ऊपर भी अवैध निर्माण हो रहे हैं। इस निर्माण का पता प्रशासन को भी है। जनता भी जानती है. बिल्डर भी जानते हैं लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।शहर की बर्बादी का बड़ा कारण है अत्यधिक निर्माण कार्य।

नैनीताल में तीन जगहों पर बढ़ गए हैं भूस्खलन के मामले

पर्यावरणविद और प्रो. डॉक्टर गिरीष रंजन तिवारी कहते हैं कि बलिया नाला क्षेत्र में पिछले लंबे समय से भूस्खलन हो रहा है। वैसे तो 50 वर्षों से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में है यहां बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा है। उसके उपचार की कोई भी तकनीक कारगर नहीं हो पा रही है। बलिया नाला क्षेत्र नैनीताल की जड़ है। यह धीरे-धीरे भूस्खलन से उखड़ रही है। यह भूस्खलन राजकीय इंटर कॉलेज तक पहुंच गया है. अगर इसके बाद कोई बड़ा भूस्खलन हुआ तो नैनीताल का यह इलाका पूरी तरह से नष्ट हो जाएगा। दो और जगह पर भारी भूस्खलन हो रहा है। पश्चिम की तरफ शेर का डंडा पहाड़ी और इसके ठीक सामने अयारपाटा पहाड़ी। लंबे समय से नैनीताल में अलग-अलग दिशाओं में भूस्खलन हो रहे हैं। ये नैनीताल के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं।

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