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थांदला में आजाद को किया याद, माल्यार्पण कर दी श्रद्धांजली

थांदला। देश के सपूत जांबाज अमर शहीद आजाद की जयंती पर आंचलिक पत्रकार संघ थांदला एवम भाजपा नगर मंडल द्वारा ऐतिहासिक आज़ाद चौक पर आज़ाद की प्रतिमा पर पत्रकार गण, जनप्रतिनिधिगण, परिषद अध्यक्ष बंटी डामोर मंडल अध्यक्ष समर्थ उपाध्याय आंचलिक पत्रकार संघ के जिलाध्यक्ष सुधीर शर्मा युवा नेता संजय भाबर ने आज़ाद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। कार्यक़म को संबोधित करते हुए नगर परिषद अध्यक्ष बंटी डामोर ने कहा कि आज हम जिस आजाद भारत में जी रहे हैं। वह कई देशभक्तों की देशभक्ति और त्याग की वेदी से सजी हुई है। भारत आज जहां भ्रष्टाचारियों से भरा हुआ नजर आता है वहीं एक समय ऐसा भी था जब देश का बच्चा-बच्चा देशभक्ति के गाने गाता था। भारत में ऐसे भी काफी देशभक्त थे, जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही देश के लिए अतुलनीय त्याग और बलिदान देकर अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित करवाया। इन्हीं महान देशभक्तों में से एक थे चन्द्रशेखर आजाद।

गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े थे आजाद

कार्यक़म को संबोधित करते हुए अशोक अरोरा ने कहा चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 को उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के बदरका नामक गाँव में हुआ। बचपन से ही उन्हें देशभक्ति में रुचि थी। 1920-21 के वर्षों में वे गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़े थे जिसके बाद वे गिरफ्तार हुए और जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए। जहां उन्होंने अपना नाम ‘आजाद’, पिता का नाम ‘स्वतंत्रता’ और ‘जेल’ को उनका निवास बताया। उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई। हर कोड़े के वार के साथ उन्होंने, ‘वन्दे मातरम्‌’ और ‘महात्मा गाँधी की जय’ का स्वर बुलन्द किया। इसके बाद वे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाए।

आजाद हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बने थे

कार्यक्रम में युवा नेता संजय भाबर ने कहा कि सन् 1922 में गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। भाजपा नेता विश्वास सोनी ने अपने संबोधन में कहा कि राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त, 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। बाद में एक–एक करके सभी क्रान्तिकारी पकड़े गए। पर चन्द्रशेखर आज़ाद कभी भी पुलिस के हाथ में नहीं आए।

कहानी आखिरी पल की

27 फ़रवरी 1931 का वह दिन भी आया जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी को मार दिया गया। 27 फ़रवरी, 1931 के दिन चन्द्रशेखर आज़ाद अपने साथी सुखदेव राज के साथ बैठकर विचार–विमर्श कर रहे थे कि तभी वहां अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया। चन्द्रशेखर आजाद ने सुखदेव को तो भगा दिया पर खुद अंग्रेजों का अकेले ही सामना करते रहे। अंत में जब अंग्रेजों की एक गोली उनकी जांघ में लगी तो अपनी बंदूक में बची एक गोली को उन्होंने खुद ही मार ली और अंग्रेजों के हाथों मरने की बजाय खुद ही आत्महत्या कर ली मौत के बाद अंग्रेजी अफसर और पुलिसवाले चन्द्रशेखर आजाद की लाश के पास जाने से भी डर रहे थे।

थांदला से मृदुभाषी के लिए शाहिद खान की रिपोर्ट

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