जयपुर शहर की स्थापना करने वाले महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय को उज्बेकिस्तान के समरकंद में एक वेधशाला संग्रहालय में नौकर बताया गया है. इसको लेकर विवाद छिड़ गया है. इतिहासकारों का कहना है कि महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय के बारे में अपमानजनक वर्णन अनुवाद में त्रुटि और इतिहास के ज्ञान की कमी का परिणाम है. उन्होंने मांग की कि जयपुर शहर की स्थापना करने वाले व्यक्ति का वर्णन करने के लिए नौकर शब्द को सुधारा जाए. तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की विधान पार्षद के कविता ने शुक्रवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर के समक्ष उलुग बेग वेधशाला (समरकंद वेधशाला संग्रहालय) के बाहर एक बोर्ड पर महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय के बारे में लिखे विवरण का मुद्दा उठाया. उन्होंने जयशंकर को पत्र लिखकर इस मुद्दे को उज्बेकिस्तान सरकार के सामने उठाने का अनुरोध किया।
बोर्ड पर 18वीं शताब्दी के राजपूत शासक का उल्लेख बोबुरी सुल्तान मुखमदशाह के महल के नौकर के रूप में किया गया, जिसे आमतौर पर मिर्जा नसीरूददीन मुहम्मद शाह के रूप में जाना जाता है. शाह 13वें मुगल सम्राट थे, जिन्होंने 1719 से 1748 तक शासन किया था. बोर्ड पर लिखा है, मिर्जो बोबुर के पूर्वज जिन्होंने भारत में 17वीं-18वीं सदी में शासन किया…18 वीं सदी के पूर्वार्द्ध के दौरान महल के नौकर, खगोलविद सवाई जय सिंह के द्वारा जयपुर, बनारस और दिल्ली में वेधशालाएं बनाई गईं, यहां उन्होंने समरकंद वेधशाला में खगोलीय उपकरणों की नकल की।
कौन थे जय सिंह द्वितीय?
सन 1688 में जन्मे जय सिंह द्वितीय गणितज्ञ, सेना नायक, खगोलशास्त्री, वैज्ञानिक और योजनाकार थे. उन्हें आज जयपुर के नियोजित शहर और भारत भर में स्थापित पांच वेधशालाओं के लिए याद किया जाता है. हूजा द्वारा 2006 में लिखित किताब ए हिस्ट्री ऑफ राजस्थान में लिखा है, समय गुजरने के साथ, इन वेधशालाओं को जंतर मंतर के रूप में जाना जाने लगा, जो यंत्र और मंत्र शब्दों से लिया गया एक वाक्यांश है. ये संरचनाएं अपने आप में विशाल विशिष्ट उपकरण हैं.