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गिद्धों की प्रजाति खत्म होने की कगार पर, ट्रेंचिंग ग्राउंड और स्लाटर हाउस बंद होने से वृद्धि पर पड़ा असर

इंदौर। गिद्धों और पक्षियों की घटती जनसंख्या से प्रदेश सरकार चिंतित है। गिद्धों की संख्या प्रदेश में खासी कम हो रही है। सरकार द्वारा वन विभाग के माध्यम से इनकी गिनती करवाई जा रही है। इस साल फरवरी में सरकार ने प्रदेश में जो गिनती करवाई थी, उसमें सात तरह के 6700 गिद्ध पाए गए थे। इंदौर वन मंडल में गिद्धों की प्रजाति पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। शहर में ट्रेंचिंग ग्राउंड खत्म होने और स्लाटर हाउस बंद होने से इस प्रजाति की वृद्धि संभव नहीं हो पा रही हैं। हालांकि गिद्ध शहरों में नहीं बल्कि आसपास के क्षेत्रों में आसानी से देखे जा रहे हैं। नगर निगम द्वारा मरे हुए पशुओं का व्यवस्थित निस्तारण करना, शहर में सफाई का माहौल गिद्धों की कमी का एक कारण है। जानकारों के अनुसार पर्यावरण के संतुलन बनाए रखने में पशु-पक्षियों की भूमिका अहम होती हैं। इन पर विशेष ध्यान देते हुए इंदौर नगर निगम और वन मंडल द्वारा चलाए गए अभियान का नतीजा हैं कि शहर में जहां आवारा पशु दिखाई नहीं दे रहे वहीं शहरों में गिद्धों की संख्या भी कम हुई हैं।

विलुप्त होती प्रजाति का सबसे बड़ा कारण इंजेक्शन

पशु वैज्ञानिक का कहना हैं कि गिद्धों की विलुप्त होती प्रजाति का सबसे बड़ा कारण डायक्लोफिन ऑक्सीटोसिन नामक एक इंजेक्शन हैं। जिसे पशुपालक ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, इसे दुधारू पशुओं को लगाया जाता है। जिससे दुधारू पशु अपने बच्चों के लिए रोका गया दूध भी रोक नहीं पाते, और पशुपालक को अधिक दूध मिलता है। यह इंजेक्शन पशु को लगातार दिए जाने पर, पशु की मौत के बाद जब उसका मृत शरीर को गिद्ध खाते हैं तो इससे गिद्ध के गुर्दे खराब होने लगते हैं और यह धीरे-धीरे मौत के मुंह में समां जाते हैं।

इंदौर मंडल में ही मिले 284

जानकारों के अनुसार इंदौर मंडल में ही 284 गिद्ध मिले थे। सबसे ज्यादा देवगुराड़िया में ट्रेंचिंग ग्राउंड के आसपास 246, पेडमी में 36 और महू में 2 गिद्ध पाए गए थे। वन विभाग के अफसरों का कहना हैं कि 23 तरह के गिद्ध पाए जाते हैं। इनमें से 9 प्रजाति भारत में देखी गई है। इनमें से कुछ खत्म होने की कगार पर है।

गिनती के लिए 15 तरीकों पर करते हैं काम

गिद्धों की गिनती के लिए 15 तरीकों पर काम किया जाता है। फोटो, प्रजाति, जगह, संख्या, उम्र पता की जाती है। इंदौर वन मंडल के पातालपानी, तिंछाफाल, पेडमी, ट्रेंचिंग ग्राउंड, गिद्ध खो सहित 12 जगह इनकी मौजूदगी के सबूत मिले हैं। एक बार फिर गिनती की जाती है तो वन विभाग के अमले को लगातार 12 घंटें जंगलों में निगाह रखना होगी। सुबह 6 से शाम 6 बजे तक आसमान के साथ पेड़ों की निगरानी की जाएगी। फोटो और वीडियोग्राफी होगी। उपवन मंडल अधिकारी एसके श्रीवास्तव के मुताबिक गिद्धों की गिनती का काम तो पूरा होने को है। रिकॉर्ड इकट्ठा कर डाटा अपडेट किया जा रहा है।

चलाए जा रहे विशेष अभियान

वहीं वन विभाग द्वारा संचालित गिद्ध प्रजनन पुनर्वास केन्द्र द्वारा समय समय पर विशेष अभियान चलाए जा रहे हैं। जानकारों की माने तो कोरोना काल के बाद बहुत लोगों की जान गई, कई लोग बेरोजगार हो गए और अन्य कई तरह की परेशानी आई, लेकिन इस दौरान लगे लॉकडाउन के कारण इससे पर्यावरण को कुछ फायदा हुआ है। तालाब, नदियों का पानी स्वच्छ हुआ है, वहीं वायु शुद्धता में भी सुधार देखने को मिला। पर्यावरण के हालत कैसे हैं, इसकी जानकारी कई माध्यमों से लगाई जाती है। इनमें से एक माध्यम पर्यावरण में मौजूद पशु-पक्षियों की संख्या से भी होती है। गिद्ध पर्यावरण सुरक्षा में एक अहम किरदार निभाता है। वन विभाग पूरे प्रदेश के साथ ही इंदौर वन मंडल क्षेत्र में इनकी गिनती कराई जा रही है।

2015 में हुई गिद्ध प्रजन्न पुनर्वास केंद्र की स्थापना

पशुपालकों द्वारा दुधारू पशुओं को दिए जाने वाले डायक्लोफिन ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन पर प्रशासन द्वारा प्रतिबंध लगाना। वहीं गिद्ध प्रजाती को बचाने के लिए गिद्ध प्रजन्न पुनर्वास केन्द्र की स्थापना 2015 में की गई थी। यह प्रजन्न केन्द्र देश में दूसरे स्थान पर माना जाता है। अब धीरे-धीरे इसका विस्तार भी किया जा रहा है। केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में गिद्ध प्रजनन केन्द्र की स्थापना की गई थी। केन्द्र की सफलता को देखते हुए केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय जल्द ही पांच अन्य राज्यों में भी नए गिद्ध प्रजनन केन्द्र स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा हैं।

गड़बड़ाएगा प्रकृति का बैलेंस

गिद्धों की संख्या में इंदौर शहर में कमी आई हैं। गिद्धों को कचरा, मृत जीव खाने को पहले आसानी से मिल जाता था। अब गिद्धों को बचाने के लिए उनके खाने की व्यवस्था करना होगी। गिद्धों की संख्या में कमी आना इको सिस्टम के लिए ठीक नहीं हैं। इससे कहीं न कहीं प्रकृति का बैलेंस गड़बड़ाएगा।
डॉ. उत्तम यादव, इंदौर चिड़ियाघर प्रभारी

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