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16 साल की रेप पीड़िता को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 8 महीने का गर्भ गिराने का दिया अधिकार


देहरादून। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 16 साल की रेप पीड़िता को 28 सप्ताह 5 दिन (करीब 8 महीने) के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दुष्कर्म के आधार पर पीड़िता को गर्भपात का अधिकार है।

गर्भ में पल रहे भ्रूण के बजाय दुष्कर्म पीड़िता की जिंदगी ज्यादा मायने रखती है। यह फैसला जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की सिंगल बेंच ने सुनाया। कोर्ट ने निर्देश है दिया कि पीड़िता का गर्भपात मेडिकल टर्मिनेशन बोर्ड के मार्गदर्शन और चमोली के सीएमएचओ की निगरानी में होगा। यह प्रक्रिया 48 घंटे के भीतर होनी चाहिए। इस दौरान यदि पीड़िता के जीवन पर कोई जोखिम आता है तो इसे तुरंत रोक दिया जाए।

सोनोग्राफी के बाद 28 हफ्तों से ज्यादा की प्रेग्नेंसी सामने आई

यह आदेश इसलिए अहम है, क्योंकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत सिर्फ 24 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को ही नष्ट किया जा सकता है। दरअसल, गढ़वाल की 16 साल रेप पीड़िता ने पिता के जरिए 12 जनवरी को चमोली में आईपीसी की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012 की धारा 6 के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी। पीड़िता की सोनोग्राफी के बाद 28 हफ्तों से ज्यादा की प्रेग्नेंसी सामने आई। जांच के बाद कहा गया कि मां की जान का जोखिम है इसलिए इस स्टेज में अबॉर्शन करना सही नहीं है। मेडिकल बोर्ड ने कहा था कि 8 महीने का गर्भ अबॉर्ट करते हैं तो पीड़िता की जान जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रेग्नेंसी की इस स्टेज में बच्चा असामान्य हो सकता है।

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