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शास्त्रों में इन तिथियों को बताया गया है शुभ फलदायी, जानिए कौनसा कार्य किस दिन करें प्रारंभ

Dharma: सनातन संस्कृति में तिथि-त्यौहारों का बहुत महत्व है। वर्षभर भारतवर्ष में उत्सवी माहैल बना रहता है और मानव तिथि के अनुसार अपने कार्यों को करता है। शास्त्रों में कुछ तिथियों को शुभ और कुछ तिथियों को अशुभ फलदायी बतलाया गया है। शुभ तिथि मे किए गए कार्य सफल होते हैं और उनका उत्तम फल प्राप्त होता है, वहीं अशुभ तिथि में किए गए कार्यों के असफल होने की संभावना होती है और उसका पूर्ण फल भी प्राप्त नहीं होता है। आइए जानते हैं तिथियों को शुभ-अशुभ फल के हिसाब से कितने भागों में विभक्त किया गया है।

पांच प्रकार की होती है तिथियां

शास्त्रों के अनुसार तिथियों को पांच भागों में विभक्त किया गया है। ये पांच भाग हैं नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा। क्रमानुसार पहली तिथि प्रतिपदा होगी नंदा, द्वितीया भद्रा, तृतीया जया, चतुर्थी रिक्ता और पंचमी पूर्णा। इसके बाद पुनः षष्ठी नंदा, सप्तमी भद्रा और इस तरह से यह क्रम चलता रहेगा।

किस तिथि में करे कौनसा कार्य

नंदा तिथि

प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशी नंदा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में व्यापार-व्यवसाय प्रारंभ करना शुभ फलदायी माना गया है। भवन निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए यही तिथियां सर्वश्रेष्ठ मानी गई हैं।

भद्रा तिथि

द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी भद्रा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में धान, अनाज लाना, गाय-भैंस, वाहन खरीदारी जैसे काम करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। इन तिथियों में खरीदी गई वस्तुओं की संख्या बढ़ती जाती है।

जया तिथि

तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशी जया तिथियां कहलाती हैं। इन तिथियों में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

रिक्ता तिथि

चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशी रिक्ता तिथियां कहलाती हैं। इन तिथियों में गृहस्थों को कोई कार्य नहीं करना चाहिए। तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिए ये तिथियां शुभ मानी गई हैं।

पूर्णा तिथि

पंचमी, दशमी और पूर्णिमा पूर्णा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में सगाई, तिलक समारोह, विवाह, भोज आदि कार्यों को किया जा सकता है।

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