उज्जैन। सनातन संस्कृति को व्रत, त्यौहार और परंपराओं की संस्कृति कहा जाता है। इसलिए भारतवर्ष में हर तिथि और दिवस का अपना विशेष महत्व है। ऐसी ही एक पुण्यदायी और फलदायी तिथि अमावस्या है। इस तिथि को विशेष रूप से स्नान, दान और पितृकर्म किए जाते हैं। अमावस्या तिथि को वारों के अनुसार भी जाना जाता है सोमवार को होने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस साल सोमवती अमावस्या 14 दिसंबर सोमवार को आ रही है।
सोमवती अमावस्या पर बन रहा है विशेष योग
इस बार सोमवती अमावस्या पर 57 साल बाद पंचग्रही युति योग बन रहा है। ऐसे में पुण्यसलीला शिप्रा और सोमवती कुंड में स्नान का विशेष महत्व है, लेकिन कोविड-19 की वजह से इस बार खास सावधानियां बरती जा रही है और महामारी की रोकथाम के लिए अभी तक घाटों पर स्नान और पूजा-पाठ पर रोक लगा रखी है। इस दिन उज्जैन के सोमेश्वर महादेव के दर्शन का भी विशेष महत्व माना गया है। सोमवती अमावस्या पर बने पंचग्रही योग में स्नान, दान पितृकार्य का विशेष महत्व है। धर्माचार्यों के अनुसार इससे पहले 1963 में इस तरह के योग का सृजन हुआ था। इस दिन अमावस्या तिथि, ज्येष्ठा नक्षत्र, चतुष्पद करण, शूल योग और वृश्चिक राशि के चंद्रमा से पंटग्रही योग बन रहा है।
सोमवती अमावस्या पर है साल का आखिरी सूर्य ग्रहण
सोमवती अमावस्या के दिन साल का आखिरी सूर्य ग्रहण भी होने जा रहा है, लेकिन यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि सूर्य ग्रहण के नहीं दिखने पर इसकी मान्यता भी नहीं है। 14 दिसंबर का सूर्य ग्रहण शाम 7 बजकर 7 मिनट से प्रारंभ होकर मध्यरात्रि तक रहेगा। भारत में न दिखने के बावजूद यह ग्रहण राजनेताओं के लिए शुभ नहीं है, लेकिन वृश्चिक राशि का यह ग्रहण दवाईयों और केमीकल उद्योग को मुनाफा देने वाले रहेगा।