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एमपी में रहस्यमयी बीमारी स्क्रब टाइफस का खतरा, छह साल के बच्चे की मौत

भोपाल-इंदौर। उत्तरप्रदेश के कुछ शहरों में कई बच्चे रहस्यमी बुखार से तप रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक यूपी में इससे 62 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि पीड़ितों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है। वहीं मध्यप्रदेश पर भी कोविड, ब्लैक फंगस और डेंगू के बाद इस रहस्यमयी बीमारी स्क्रब टाइफस का खतरा मंडरा रहा है। इस बीमारी का शिकार हुए एक 6 साल के बच्चे भूपेंद्र नोरिया की 15 अगस्त को जबलपुर मेडिकल कॉलेज में मौत हो गई। रायसेन के इस बच्चे में अब स्क्रब टायफस की पुष्टि हुई है। इस बीमारी में व्यक्ति को पहले ठंड लगती है और फिर बुखार आता है। समय पर इलाज न कराने पर यह बिगड़ जाता है। इस वजह से मरीज को निमोनिया या इंसेफलाइटिस हो जाता है। वह कोमा में भी जा सकता है। यह बीमारी जुलाई से अक्टूबर के बीच अधिक फैलती है। जबलपुर मेडिकल कॉलेज के एक्सपर्ट के मुताबिक, इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को लगता है कि उसे वायरल फीवर है, लेकिन बाद में यह गंभीर रूप ले लेती है। इसे रिकेटसिया नाम का जीवाणु फैलाता है। ये जीवाणु पिस्सुओं में होता है। ये पिस्सू जंगली चूहों से इंसानों तक पहुंचते हैं। इसी पिस्सू के काटने से जीवाणु शरीर में प्रवेश कर जाता है।

इंदौर की बात करें तो इस समय यहां बच्चे सर्दी, खांसी व बुखार की चपेट में आ रहे हैं। हालात यह है कि कुछ एक निजी व सरकारी अस्पतालों में तो बच्चों के लिए बेड भी आसानी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। चिकित्सकों के मुताबिक पिछले वर्ष की तुलना में इस बार वायरल बुखार के वायरस की तीव्रता ज्यादा है। इस वजह से ज्यादा संख्या में बच्चे बीमार हो रहे हैं।

देश के कई हिस्से चपेट में

राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल (एनएचपी) के अनुसार, स्क्रब टाइफस देश के कई हिस्सों में फैल चुका है। यूपी के अलावा इसमें जम्मू से लेकर नागालैंड तक उप-हिमालयी बेल्ट भी शामिल हैं। यह डेंगू की तरह एक वेक्टर बॉर्न बीमारी है। स्क्रब टाइफस किसी वायरस के कारण नहीं बल्कि बैक्टीरिया के कारण होता है। इसे बुश टाइफस के नाम से भी जाना जाता है।

नहीं है वैक्सीन, लेकिन बचाव संभव

सीडीसी के मुताबिक, स्क्रब टाइफ्स की कोई वैक्सीन तो नहीं है, लेकिन इससे बचा जा सकता है। इसमें किसी संक्रमित व्यक्ति से उचित दूरी बनाना सबसे अहम है। इसके अलावा ऐसे इलाकों में जाने से बचना चाहिए जहां चिगर्स यानी लार्वा माइट्स होते हैं। इसके साथ-साथ सीडीसी द्वारा लोगों को हाथ-पैर ढंककर रखने की सलाह दी जाती है। लोगों को कीटनाशक के छिड़काव की भी सलाह दी जाती है क्योंकि इससे लार्वा माइट्स मरते हैं।

चाचा नेहरु अस्पताल में लाए जा रहे रोज 500 बच्चे

इंदौर के डॉक्टरों के मुताबिक इस समय बच्चों को वायरल फीवर और बैक्टीरियल निमोनिया तेजी से हो रहा है। कई केस डायरिया के भी हैं। चाचा नेहरु अस्पताल की ओपीडी में रोजाना करीब 500 बच्चे उपचार के लिए लाए जा रहे हैं। अरबिंदो अस्पताल में 50 फीसद बेड फुल हो चुके हैं। वर्तमान में शिशु रोग चिकित्सकों के पास पहुंच रहे मरीजों में 80 फीसद वायरल फीवर व डेंगू के मरीज पहुंच रहे हैं। शहर के निजी व सरकारी अस्पतालों में काफी ज्यादा संख्या में बच्चे भर्ती हो रहे है।

ज्यादा मिलजुल रहे लोग

डॉक्टरों के मुताबिक फ्लू के सीजन के बावजूद लोग ज्यादा मिलजुल रहे हैं। इसकी वजह से फ्लू के मरीज लगातार बढ़ रहे हैं। इस बार बच्चों में डेंगू और फ्लू का ज्यादा जोर है। इसके कारण बच्चों में निमोनिया भी हो रहा है। पिछले साल के मुकाबले फ्लू, निमोनिया व डेंगू फीवर बच्चों में ज्यादा मिल रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक बच्चों को सर्दी-खांसी व बुखार होने पर तुरंत इलाज जरूरी है, ताकि उनकी बीमारी निमोनिया तक नहीं जाए। डेंगू की जांच भी जल्दी होना चाहिए।

ज्यादा आ रहे केस

इंदौर में वर्तमान में वायरल फीवर के साथ डायरिया के केस भी ज्यादा आ रहे है। निमोनिया का असर पांच से सात दिन तक देखने को मिल रहा है।
डॉ. हेमंत जैन, अधीक्षक, चाचा नेहरु अस्पताल इंदौर

50 प्रतिशत बेड फुल

हमारे अस्पताल में बच्चों के 50 प्रतिशत बेड फुल है। इसके अलावा आईसीयू में भी बच्चे भर्ती है। ओपीडी में अभी हर दिन 60 से 100 बच्चे आ रहे हैं। इस बार बच्चों में सर्दी-खांसी व फ्लू की बीमारी ज्यादा दिख रही है।
डॉ. गुंजन केला, एचओडी, शिशु रोग विभाग, अरबिंदो अस्पताल इंदौर

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