नई दिल्ली। भाजपा नेतृत्व द्वारा विभिन्न राज्यों में किए जा रहे बड़े बदलावों से पार्टी का एक वर्ग असहज है। खासकर सत्ता वाले राज्यों में नेतृत्व परिवर्तन में पार्टी ने जिस तरह से नए चेहरों को तरजीह दी है, वह पार्टी के तमाम वरिष्ठ नेताओं को रास नहीं आ रही है। हालांकि अनुशासन के चलते वह फैसले के समर्थन में खड़े हैं, लेकिन उनकी अंदरूनी नाराजगी चुनावों के समय असर दिखा सकती है।
वरिष्ठता आ रही है आड़े
भाजपा नेतृत्व ने हाल में उत्तराखंड, कर्नाटक व गुजरात में मुख्यमंत्री बदले हैं। अभी कुछ और बदलाव की संभावना है। ऐसे में पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को लगने लगा है कि उनके आगे बढ़ने में उनकी वरिष्ठता ही आड़े आने लगी है। बदलाव की स्थिति में उनके बजाए उनके कनिष्ठ को ही आगे बढ़ाया जाएगा। उत्तराखंड में तीरथ सिंह रावत को हटाए जाने के समय पार्टी में कई वरिष्ठ नेताओं की उम्मीद थी कि उनमें से ही किसी को नेतृत्व के लिए चुना जाएगा, लेकिन पार्टी ने दूसरी बार के विधायक पुष्कर सिंह धामी का फैसला किया।
वरिष्ठ नेता हैं असहज
कर्नाटक में भी येद्दुरप्पा के उत्तराधिकारी के रूप में कई वरिष्ठ नेता खुद के लिए संभावनाएं देख रहे थे। हालांकि पार्टी ने एक वरिष्ठ नेता पर ही दांव लगाया, लेकिन संघ से जुड़े नेताओं को यह बात अखर गई। नए नेता समाजवादी पृष्ठभूमि से हैं और संघ से कोई नाता नहीं रहा है। अब गुजरात में विजय रूपाणी की जगह चुने गए भूपेंद्र पटेल को लेकर भी राज्य के पार्टी के कई वरिष्ठ नेता असहज हैं। यह अंदाजा सभी को था कि इस बार रणनीति के तहत पाटीदार समुदाय से नेता चुना जाएगा। इसलिए पाटीदार समुदाय से आने वाले कई प्रमुख नेताओं के नाम चर्चा में रहे, लेकिन पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को नेता चुना गया। ऐसे में पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल समेत कई प्रमुख पाटीदार नेताओं का असहज होना स्वाभाविक है। पटेल का यह बयान कि उनकी ही नहीं कई नेताओं की भी बस छूटी है, उनकी मायूसी को साफ करता है्।
सूत्रों के अनुसार कई राज्यों में इस तरह के फैसलों से असहज नेताओं की संख्या बढ़ रही है। हालांकि पार्टी के मानना है कि फैसले पार्टी हित में रणनीति के हिसाब से लिए जाते हैं, किसी व्यक्ति के हिसाब से नहीं। ऐसे में कुछ देर की नाराजगी भले ही हो, लेकिन ज्यादा असर नहीं पड़ता है। इसके बावजूद पार्टी पूरी तरह से सतर्क है।