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उज्जैन में होगा पानी में तैरने वाले रामसेतु के पत्थरों का निर्माण, रामयुग की याद होगी ताजा

उज्जैन। पानी पर तैरते पत्थरों का पुल सामने आते ही रामायण की याद ताजा हो जाती है जब लंका पहुंचने के लिए वानर सेना ने तैरते पत्थरों से पुल बनाया था। अब फिर से वैसे ही पत्थरों से पुल बनाने की तैयारी हो रही है। इसके लिए विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के इंजीनियरिंग विभाग और उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज मिलकर शोध करेंगे। दरअसल विक्रम विवि के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग और उज्जैन इंजीनियरिंग कॉलेज द्वारा मिलकर रामसेतु के पत्थरों पर रिसर्च किया जाएगा और रामसेतु के पत्थरों की तरह पानी पर तैरने वाला मटेरियल तैयार किया जाएगा। इसी को लेकर दोनों संस्थानों के बीच एक एमओयू साइन किया जा चुका है। इसके पीछे उद्देश्य उस पत्थर के बारे में जानना है, जिससे पत्थर तैयार हुआ है। इसरो, नासा, आईआईटी सहित अन्य कई एजेंसियों ने यह तो पता लगा लिया है कि यह पत्थर प्यूबिक मटेरियल से बना है। रिसर्च में समझने की कोशिश की जाएगी कि पत्थर का स्ट्रक्चर क्या है। वह कितना भार सह सकता है। यदि हम उस स्ट्रक्चर को लैब में बना सके, तो यह बड़ी उपलब्धि होगी।

इस मटेरियल का होगा निर्माण

बायो डिग्रेडेबल मटेरियल एवं मशरुम मायसिलियम आदि का उपयोग कर निर्माण कार्य में लगने वाले ईट का निर्माण किया जाएगा। इस कार्य हेतु दोनों संस्थानों द्वारा मिलकर रिसर्च किया जाएगा। रामसेतु निर्माण में उपयोग किए गए तैरने वाले पत्थर पर रिसर्च कार्य कर उसके समतुल्य सामान आधुनिक मटेरियल का निर्माण कर सकेंगे।

यह होगा फायदा

-पानी पर तैरने वाला पत्थर बनाने में सफलता मिल जाती है तो देश में कम वजन वाले पुल पुलिया व भवन बन सकेंगे।
-इसे भूकंप वाले क्षेत्रों में प्रयोग करना प्रासंगिक होगा।
-इसकी लागत पर भी रिसर्च किया जाएगा।

एक साल में आएगा रिजल्ट

भारत के दक्षिण-पूर्व में रामेश्वरम् से श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चट्‌टानों की चेन है। इसे रामसेतु बताया जाता है। हालांकि आधुनिक इतिहासकार इसे एडम्स ब्रिज कहते हैं। इसकी लंबाई करीब 48 किमी है। जरूरत पड़ी तो छात्रों को रामेश्वरम् टूर भी भेजा जाएगा। इस रिसर्च के परिणाम आने में एक साल का समय लगेगा। रिसर्च एवं डेवलपमेंट कार्य हेतु दोनों संस्थान एक दूसरे की प्रयोगशाला का उपयोग करेंगे।

लैब में बनाना चाहते हैं स्ट्रक्चर

हम उस पत्थर के बारे में जानना चाहते हैं जो पानी पर तैरा था। कुछ रिसर्च में यह बात सामने आई है कि उक्त पत्थर प्यूबिक मटेरियल से बना है लेकिन हम उस स्ट्रक्चर को प्रयोगशाला में बनाना चाहते हैं। –प्रो. अखिलेश कुमार, कुलपति, विक्रम विवि उज्जैन

एक्सचेंज प्रोग्राम चलेगा

हम पत्थर का मटेरियल चैक करेंगे। इसके लिए हमें संसाधनों की जरूरत होगी। इसके लिए विवि से एमओयू साइन किया है। इसमें इंजीनियरिंग कॉलेज और विक्रम विवि के बीच एक्सचेंज प्रोग्राम चलेगा। -डॉ. गणपति अहिरवार, डायरेक्टर, शा. इंजीनियरिंग कॉलेज उज्जैन

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