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जुगाड़ से बना डाला नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से मिली मंजूरी

जुगाड़ से बना डाला नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर

कोरोना संक्रमितों के लिए इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती समय पर ऑक्सीजन ना मिलने की हो रही है ,जिसके कारण कितने ही लोग अपनी जान गवा चुके है। वही बहुत से लोग इंसानियत के नाते इस समय ऑक्सीजन की मदद भी कर रहे है। ऑक्सीजन की मारामारी को देखते हुए इंदौर के एक उद्योगपति ने अपने रिटायर्ड वैज्ञानिक मित्र के साथ मिलकर कुछ महिनों में ही एक नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर बनाकर तैयार कर लिया है जिसकी कीमत बाजार के वेंटिलेटर की कीमत से आधी है ।

कोरोना महामारी के बीच एक ओर जहां आम जतना ऑक्सीजन सिलेंडर और वेंटिलेटर की कमी से जूझ रही है वहीं इंदौर के उद्योगपति ने इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की है। शहर के उद्योगपति संजय पटवर्द्धन ने रिटायर्ड वैज्ञानिक के साथ मिलकर 10 माह की कड़ी मशक्कत के बाद नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर तैयार किया है, यह वेंटिलेटर यूरोयिन मानकों को ध्यान में रख कर बनाया गया है, साथ ही इसकी कीमत भी बाजार में उपलब्ध वेंटीलेटर से आधी से भी कम बताई जा रही है ।

स्वास्थ्य मंत्रालय से नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर को मिली मंजूरी

नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से भी मंजूरी मिल गयी है। संजय पटवर्द्धन के मुताबिक वह खुद ग्रामीण इलाके से ताल्लुक रखते है, इसलिए इस मशीन को ग्रामीण इलाको को खास ख्याल में रखकर बनाया गया है, इस वजह से इसके दाम महंगे नही है । बताया जा रहा है कि डॉक्टर भंडारी दम्पत्ति ने यह तकनीक इजात की थी, जिसके बाद केट के रिटायर्ड वैज्ञानिक अनिल थिप्से की मदद से पटवर्द्धन ने इसे बनाया है। शुरुआत में यह सिर्फ पांच ही बनाये गए थे जो कि पहले ही दिन बिक भी गए,अब इसके बाद एक साथ पचास के करीब यह वेंटीलेटर बनाये जाएंगे ।

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