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MDH: विभाजन के दर्द को पीछे छोड़कर खड़ा किया मसालों का साम्राज्य

नई दिल्ली। विभाजन के दर्द को दिल में लेकर दिल्ली आए महाशय धर्मपाल गुलाटी का जीवन विषमताओं और सौगातों का संगम था। जिंदगी को दिक्कतों से निकालकर कैसे शीर्ष पर पहुंचाया जाता है, ये बात उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा थी। कभी तांगा चलाकर दो जून की रोटी कमाने वाले महाशय गुलाटी को कारोबार की दुनिया में नए आयाम स्थापित करने पर भारत सरकार ने पद्मविभूषण जैसे सम्मान से भी सम्मानित किया था।

दिक्कतों को पीछे छोड़कर खड़ा किया कारोबारी साम्राज्य

कारोबार उनके खून में रचा-बसा था और इसकी बारीकियों का कहकहा उन्होंने बचपन में ही सीख लिया था, लेकिन देश विभाजन की त्रासदी ने जब सब कुछ छीन लिया तो पेट भरने के लिए तांगा चलाने से भी गुरेज नहीं किया, लेकिन कारोबार उनका जुनून था और उन्होंने सभी तरह की दिक्कतों को पीछे छोड़ते हुए एक बार फिर से कारोबार की दुनिया में कदम रखने की ठानी और घर से ही छोटा सा व्यापार शुरू कर दिया। कुछ समय बाद दिल्ली के कीर्तिनगर में सीमित संसाधनों के साथ पहली फैक्ट्री की शुरूआत की।

दुनियाभर में पहुंचाई हिंदुस्तानी मसालों की सुगंध

महाशय धर्मपाल गुलाटी की मेहनत जल्द ही रंग लाई और दिल्ली की गुमनाम कॉलोनी से शुरू हुआ मसालों के स्वाद और सुगंध का कारोबार देश के साथ दुनिया के बड़े देशों में अपनी रंगत बिखेरने लगा। वर्तमान में MDH मसालों के 1000 से ज्यादा डिस्ट्रीब्यूटर और चार लाख से ज्यादा रिटेल डीलर्स हैं। कंपनी के सालाना कारोबार की बात करे तो वह दो हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। कंपनी में अत्याधुनिक मशीनों की मदद से एक दिन में 30 टन मसालों की पिसाई और पैकिंग की जा सकती है। कंपनी के मसालों की मांग अमेरिका, ब्रिेटेन, स्पेन, यूएई से लेकर कई नामचीन देशों में है।

MDH मसालों की पहचान महाशय धर्मपाल गुलाटी और कंपनी के उम्दा विज्ञापन होते थे। विज्ञापनों में भारतीय परंपरा, संस्कार और स्वाद, सुगंध के खजाने को बेहकरीन और उम्दा तरीके से पेश किया जाता है। कंपनी के विज्ञापनों का अहम हिस्सा मसालों के साथ महाशय धर्मपाल गुलाटी होते थे।

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