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‘मौली’ का सिर्फ धार्मिक नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है

Dharam: सनातन संस्कृति में पूजा-पाठ, यज्ञ और किसी धार्मिक महोत्सव को प्रारंभ करने पर कुछ परंपराओं को निभाया जाता है, जिससे वह कर्म शुभता के साथ संपन्न हो और यजमान को उसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो। ऐसी ही शास्त्रोक्त परंपरा कलावा बांधने की है, जो किसी मंदिर में जाने पर या किसी धार्मिक कार्य के करने से पहले बांधा जाता है।

कलावा का वैदिक नाम है ‘उप मणिबंध’

कलावा को मौली या रक्षासूत्र भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध है। कलावा बांधने का विधान धार्मिक होने के साथ विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि कलावा बांधने का प्रारंभ देवी लक्ष्मी और दानवीर राजा बलि ने किया था। राजा बलि की कलाई पर वामन भगवान ने रक्षासूत्र बांधा था। वेदों के अनुसार जब वृत्रासुर से युद्ध के लिए इन्द्र प्रस्थान कर रहे थे तब इंद्राणी ने उनकी रक्षा के लिए रक्षासूत्र बांधा था। वत्रासुर को मारकर जब इंद्र विजयी हुए तभी से यह परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि कलावा बाधने से जीवन की संकटों से रक्षा होती है। कलावा बांधते समय इस मंत्र को बोला जाता है।

येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल: ।।

कलावा बांधने से मिलती है देवी-देवताओं की कृपा

कलावा बांधने से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के आशीर्वाद के साथ तीनों देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, और विष्णु से रक्षाबल प्राप्त होता है और महेश की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। मान्यता है कि कलावा में देवी-देवता अदृश्य रूप में विराजित रहते हैं। मौली कच्चे सूत से बनी होती है और यह तीन शुभ रंगों लाल, पीले और हरे से रंगी होती है। कभी इसमें नीला और सफेद रंग भी शामिल किया जाता है तब यह पंचरंगी हो जाती है। इसलिए मौली में तीन रंग त्रिदेव के और पंचरंग पंचदेव का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसको कलाई पर बांधने से समृद्धि के साथ आरोग्य की प्राप्ति होती है। तिजोरी, कलम, बहीखाते आदि पर भी शुभता के लिए कलावा बांधा जाता है।

कलावा बांधने के हैं शास्त्रोक्त नियम

कलावा को विवाहित महिलाओं के बांए हाथ और अविवाहित महिला-पुरुष के दांए हाथ पर बांधने का विधान है। जिस हाथ में मौली बांधी जाए उसकी मुट्ठी बंधी हुई हो और दूसरा हाथ सिर पर हो। कलावा को पांच या सात बार घूमाकर बांधना चाहिए। मंगलवार या शनिवार को पुरानी मौली बदलना चाहिए और पुरानी मौली को पीपल के पेड़ के नीचे डाल देना चाहिए।

विज्ञान के अनुसार शरीर के अधिकतम हिस्सों की ओर जाने वाली नसें कलाई से होकर जाती है। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे ब्लड प्रेशर, ह्दय रोग, मधुमेह और लकवे जैसे रोगों से रक्षा होती है।

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