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क्या देश के लिए जरूरी है, जनसंख्या नियंत्रण कानून ?

किसी भी देश की मैनपॉवर तय करती है की उस देश का विकास किस तरह से होगा। परन्तु क्या सच में ऐसा कुछ भी संभव है। किसी भी देश की जनसंख्या ह्यूमन रिसोर्स के तौर पर उसके लिए उपयोगी हो सकती है, लेकिन लगातार अनकंट्रोल हो रही पॉपुलेशन उसी देश के लिए परेशानी का एक बड़ा कारण भी बन सकती है। इसी के तहत विश्व जनसंख्या दिवस पर, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को राज्य की नई जनसंख्या नीति जारी की, जिसके बाद देश के बाकी राज्यों में भी इस कानून को लेकर मुद्दा गरमा रहा है।

1800 ईसवीं तक विश्व की आबादी को एक बिलियन तक पहुंचने में लाखों साल लगे। उसके बाद यह सिर्फ 100 वर्षों के भीतर ही दोगुनी हो गई और जल्द ही छह बिलियन तक पहुंच गई। ट्रैफिक जाम , बेहतर परिवहन सुविधाएं, या फिर बेहतर आय मुहैया कराना हो राजनीतिक दलों के लिए सेवाओं को वितरित करने और लोगों के लिए बेहतर जीवन में बाधा उत्पन्न करने वाली समस्याओं को हल करना जरूरी है और इसी वजह से उन्होंने इस मुद्दे को उठाया है। जब नीति-निर्माता विफल होते हैं तो बढ़ती आबादी उनके लिए ढाल का काम करती है। भारत के सत्तारूढ़ दल जैसे रूढ़िवादी दलों को जनसंख्या वृद्धि के विषय में अधिक मुखर, बल्कि एक हद तक कट्टर माना गया है।

सरकारी लाभ लेने वाले जनसंख्या विस्फोट कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 15 अगस्त 2019 को लाल किले से जनसंख्या विस्फोट पर चिंता जताते हुए छोटा परिवार रखने को देशभक्ति बताया था। बीजेपी नेता अश्निनी उपाध्याय ने पीएमओ को दिए प्रजेंटेशन में कहा है कि टैक्स देने वाले हम दो-हमारे दो नियम का पालन करते हैं लेकिन मुफ्त में रोटी कपड़ा मकान और अन्य सरकारी लाभ लेने वाले जनसंख्या विस्फोट कर रहे हैं।उन्होंने यह तक कह दिया कि हजारों साल पहले भगवान राम ने हम दो-हमारे दो नियम की शुरुआत किया था और आम जनता को संदेश देने के लिए लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न सहित स्वयं “हम दो-हमारे दो” नियम का पालन किया था, जबकि उस समय जनसंख्या विस्फोट की समस्या इतनी खतरनाक नहीं थी। सभी राजनीतिक दल स्वीकार करते हैं कि जनसंख्या विस्फोट वर्तमान समय में बम विस्फोट से भी अधिक खतरनाक है।

पच्चीस आए, सारे के सारे भूखे जाए

देश की बढ़ती जनसंख्या समस्या नहीं है, समस्या है उस जनसंख्या का अनपढ़ होना, यूजलेस होना और किसी भी प्रकार के विकास में काम ना आना। सवाल यह उठता है की क्या किसी कानून के जरिये जनसँख्या को नियंत्रित किया जा सकता है ? आज स्थिति यह है कि श्पांच बुलाए, पच्चीस आए, सारे के सारे भूखे जाए! अभी नहीं चेते तो आने वाली पीढियों के बहुत ही बुरे हाल होंगे। विडंबना यह है कि संपन्न लोगों के बच्चे कम है और विपन्न लोगों के बहुत ज्यादा। इतना कष्ट सहन करने के बाद भी गरीब तबका सुधरने को तैयार नहीं। अतः सरकार ने जनसंख्या नियंत्रित करने के को लेकर शख्त कदम उठाये है।

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