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आखिर क्यों असफल हुई खरमोर(Kharmor) के संरक्षण की कोशिशें, न आ रहे पक्षी न किसानों को मिल रहा जमीन पर अधिकार

आखिर क्यों असफल हुई खरमोर के संरक्षण की कोशिशें, न आ रहे पक्षी न किसानों को मिल रहा जमीन पर अधिकार

आशीष यादव/धार/हरे घास के मैदानों में वन विभाग का अमला बड़ी बेसब्री से एक पक्षी का इंतजार कर रहा है। यह इलाका मध्यप्रदेश मप्र के मालवा के पठार क्षेत्र में आने वाले धार जिले की सरदारपुर तहसील का है। यहां खरमोर(Kharmor) पक्षी जिसे अंग्रेजी में लेसर फ्लोरिकन कहा जाता है, उसके लिए बनाई गई बर्ड सेंचुरी है।

चार दशक पहले यहां के लगभग 35 हजार हेक्टेयर की खेतों में खरमोर(Kharmor) की बसाहट के इंतजाम किये गए थे, लेकिन इस प्रोजेक्ट में कोई खास सफलता नहीं मिली। इसका अहम कारण यहां पक्षी और इंसान के बीच स्थापित असंतुलित संबंध है, जो इंसानी हितों को ज्यादा नुकसान पहुंचाता रहा है।

ऐसे में इसका असर उस खरमोर(Kharmor) पक्षी पर भी पड़ा है, जिसके लिए यह इलाका संरक्षित किया गया था। खरमोर पक्षी अपने करतबों के लिए जाना जाता है। नर खरमोर अपने प्रेमालाप के लिए एक दिन में करीब 500 बार एक से डेढ़ मीटर की छलांग मारता है। मप्र में खरमोर की आमद जुलाई से अक्टूबर के बीच होती है। यहां सरदारपुर में बनी खरमोर सेंचुरी में ये पक्षी दिखाई देते हैं।

विलुप्त होने की कगार पर खरमोर(Kharmor) पक्षी स्थानीय वन विभाग के रेंजर विक्रम चौहान बताते हैं कि बीते साल यहां पांच जोड़े खरमोर पक्षी आए थे और उसके पहले की संख्या भी तकरीबन यही थी। भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत खरमोर को उच्चतम स्तर पर संरक्षण दिया गया है। आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature) की रेड लिस्ट में भी खरमोर को लुप्तप्राय जीव के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। इसके अलावा भारत में इसे पर्यावरण मंत्रालय द्वारा वन्यजीव आवासों के एकीकृत विकास में पुनर्प्राप्ति के लिए प्राथमिकता वाली प्रजाति के रूप में भी शामिल किया गया है।

हालांकि, इसके बावजूद इस पक्षी को बचाने की अब तक की सभी कोशिशें असफल रहीं हैं और खरमोर की संख्या में भारी गिरावट आई है। आंकड़ों के अनुसार, मप्र में वर्ष 2009 में लगभग 50-55 खरमोर पक्षी होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन उसके बाद इनकी संख्या और भी तेजी से गिरी है। हालत यह है कि अब सरदारपुर की सेंचुरी में खरमोर की संख्या मुश्किल से ही दहाई के अंक तक पहुंचती है।

खरमोर

जुलाई से होता है आगमन:

खरमोर बरसात के मौसम में जुलाई से अक्टूबर के बीच सरदारपुर के इस इलाके में आता है। यहां वह प्रजनन करता है और अंडे देता है, जिसके बाद वह बच्चों को लेकर उड़ जाता है। खरमोर के लिए यह सेंचुरी बनाने का सुझाव वर्ष 1980 में दिया गया था, जब बॉम्बे हिस्ट्री नेचुरल सोसायटी के पक्षी विशेषज्ञ सलीम अली इस इलाके में आए थे।

उस समय उन्हें यहां कुछ खरमोर दिखाई दिए थे। उन्होंने पाया कि यह क्षेत्र खरमोर के आने और प्रजनन के लिए अनुकूल है, ऐसे में उन्होंने राज्य सरकार को यह सुझाव दिया। वर्ष 1983 में यहां पक्षी अभ्यरण्य यानी बर्ड सेंचुरी बनाई गई। उसी समय रतलाम जिले के सैलाना में भी खरमोर के लिए एक दूसरी सेंचुरी बनाई गई थी।

14 गांव ऐसे हैं जहां की जमीनों खरीदी बिक्री पर रोक:

सरदारपुर में बर्ड सेंचुरी के आसपास कई गांव बसे हैं। उनमें से 14 गांव ऐसे हैं जहां की जमीनों को 40 वर्ष पहले सेंचुरी के लिए रिजर्व या नोटिफाई कर दिया गया था। उन गांवों के किसानों के पास अपनी जमीनें तो हैं, लेकिन उनके पास वह अधिकार नहीं है जो किसी दूसरे जमीन मालिक के पास होते हैं। किसानों की जमीनें न तो सरकार ने ली है और न ही कोई मुआवजा दिया है, बस जमीनों की खरीद-बिक्री पर सरकार ने रोक लगा दी है।ऐसे में किसानों को उस पर लोन भी नहीं मिल सकता है। किसानों के मुताबिक, उन्हें उनकी जमीनों पर किसी सरकारी योजना का फायदा भी नहीं मिलता है।

वे वर्षों से मांग करते आ रहे हैं कि जिस खरमोर(Kharmor) पक्षी के लिए सरकार ने हजारों किसानों की जमीनों पर यह रोक लगा रखी है; वह पक्षी उनकी जमीनों पर आता ही नहीं। ऐसे में उनकी जमीन उन्हें वापस क्यों नहीं दे दी जाती। गांवों की कुल 348.2 वर्ग किमी में फैली 34,812 हेक्टेयर जमीन इस वजह से प्रभावित हो रही है। इन 14 गांवों में गुमानपुरा, बिमरोद, चिदावड़, पिपलानी, सेमलिया, करणावद, केरिया, धुलैट, सियावड़, सोनगढ़, अमोदिया, तिमाइची, भानगढ़ और महापुरा शामिल हैं।

ये सभी ग्राम पंचायत आदिवासी बाहुल्य हैं। इनमें से कई गांवों की जमीनें वन भूमि पर नहीं है, लेकिन खरमोर(Kharmor) अभ्यारण्य क्षेत्र में आती हैं। गांवों में लोग खेती करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी जमीन पर इससे अधिक कोई अधिकार नहीं है।

मंत्रालयों में गया हूं समाधान मिलेगा:

उनके अनुसार, “खरमोर(Kharmor) सेंचुरी एक अच्छा कदम था, लेकिन उसका ध्यान नहीं रखा गया और अब कुछ पक्षियों के लिए हजारों लोगों की जमीनों को बिना किसी ठोस वजह के रोककर रखा गया है, जोकि गलत है।”इस बारे में धार-महू लोकसभा क्षेत्र से सांसद छतर सिंह दरबार कहते हैं, “यहां खरमोर काफी कम संख्या में आते हैं, लेकिन उनके लिए काफी बड़ी जमीन रखी गई है।

” उनके अनुसार, “पहले ज्यादा जमीन रखने और हाईवे के किनारे जो दीवार आदि बनाए गए थे, वह सभी सेंचुरी को बेहतर बनाने के लिए था। लेकिन, पक्षियों की संख्या अब कम हो रही है और जमीन पर पूरा अधिकार न होने से स्थानीय लोगों की परेशानी बढ़ गई है। “मैं इस मसले को लेकर कई बार मंत्रालयों में गया हूं। मुझे उम्मीद है कि हमें इस पर जल्द ही कोई सकारात्मक समाधान मिलेगा।”

फसलों के बीच आकर बैठ जाते है खरमोर(Kharmor) को लेकर वन विभाग एवं ग्रामीणों का मत खरमोर एक शर्मीला पक्षी है और इसकी संख्या लगातार घट रही है। यही वजह है कि यह पक्षी अब मुश्किल से ही नजर आता है। वन विभाग के अधिकारी कहते हैं कि गांव वाले खरमोर के संरक्षण में मदद नहीं करते।

उनके मुताबिक, गांव वाले उनके खेतों में खरमोर(Kharmor) के आने की जानकारी नहीं देते। हालांकि, ग्रामीणों से यह पूछे जाने पर कि क्या खरमोर(Kharmor) उनके खेत में दिखा; वे कहते हैं कि उन्होंने पिछले करीब 35 साल में कभी खरमोर को अपने सामने नहीं देखा।ग्रामीण बताते हैं कि “जब भी खरमोर की खबर आती है तो वन विभाग की ओर से कुछ तस्वीरें अखबारों को भेज दी जाती हैं और वही अगले दिन प्रकाशित होती हैं, जिससे उन्हें पता चलता है कि उनके आस-पास खरमोर दिखा है।”

कठोर करवाई नही हुई:

खरमोर(Kharmor) सेंचुरी में जो जमीन वन विभाग के पास है, केवल उसी पर खरमोर की बसाहट के इंतजाम किए जाएं। गांव वालों की जमीन डिनोटिफाई कर दी जाए। इसके लिए केंद्र के नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ से अनुमति मिल गई है और उनके द्वारा यह सुप्रीम कोर्ट की समिति को भेज दिया गया है। अब तक उन्होंने किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं जताई है, ऐसे में उम्मीद है कि यह प्रस्ताव पास हो जाएगा और गांव वालों को उनकी अपनी जमीन पर अधिकार जल्द ही मिल जाएगा।

हालांकि ग्रामीण कहते हैं कि उनसे इस तरह के वादे पहले भी किए जाते रहे हैं, लेकिन कई साल गुजरते रहे और अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।पर्यावरण प्रेमी और इंदौर इलाके के जाने माने बर्ड वॉचर अजय गड़ीकर कहते हैं कि वह बीते करीब 12 वर्षों से खरमोर की तस्वीरें ले रहे हैं। उनके मुताबिक, “अब सरदारपुर सेंचुरी में खरमोर पक्षी न के बराबर आ रहे हैं।

जुलाई से अक्टूबर तक अमूमन पक्षी आ जाते हैं, लेकिन अगस्त भी बीत गया है और खरमोर दिखाई नहीं दिए। ऐसे में उनके प्रजनन के तीन महीने का वक्त आधा भी नहीं बचा है।”इस मामले की जानकारी देते हुए प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) असीम श्रीवास्तव कहते हैं कि यह बड़ी परेशानी रही है, लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही यह विषय सुलझ जाएगा।

kharmor

आता है खरमोर(Kharmor):

पिछली बार पांच जोड़े खरमोर(Kharmor) पक्षी आए थे, लेकिन इस बार एक भी नहीं आया है। खरमौर को लेकर तैयारी पूर्ण है। खरमौर आता है तो हम उनकी तस्वीरें जारी करते हैं। कई पर्यावरणविद भी यहां आते हैं और खरमोर की तस्वीरें लेते हैं।
एसके रणछोरे एसडीओ सरदापुर, वन विभाग

अगस्त के अंत तक खरमोर पक्षी की आमद हो जाती है। इस साल अभी तक पक्षी नहीं आए है। विभाग के कर्मचारियों की टीम अभ्यारण्य में लगातार गस्त दे रही है। पास के जिले रतलाम झाबुआ में भी पता लगाया गया था, वहां भी पक्षी नहीं देखा गया है।
-मयंक सिंह गुर्जर, प्रभारी डीएफओ, धार

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