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Deep Dan: दीपदान का है ऐसा महत्व, जानिए प्रक्रिया और मिलने वाले लाभ

Deep Dan: सनातन संस्कृति में दीपदान का बड़ा महत्व है। विभिन्न तिथि त्यैहारों पर दीपदान करने की परंपरा का वर्णन शास्त्रों में किया गया है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि दीपदान करने से शुभता प्राप्त होती है और देवी-देवताओं से सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।

इन स्थानों पर करें दीपदान

दीपदान का अर्थ है दीप को प्रज्जवलित कर उसको पवित्र नदी, सरोवर या कुंड के किनारे पर रखना। इसके साथ किसी दीपक को जलाकर देव स्थान पर रखकर आना या उन्हें नदी में प्रवाहित करना भी दीपदान कहलाता है। धर्मग्रंथों में विशेष स्थानों पर दीपदान करने का विधान बतलाया गया है। इसके अंतर्गत देवमंदिर, विद्वान ब्राह्मण के घर, नदी के किनारे और नदी में, दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने की परंपरा है।

दीपदान की प्रक्रिया

मिट्टी या आटे का दिया बनाकर उसमें तेल भरकर प्रज्जवलित किया जाता है और उसको नदी, सरोवर या मंदिर में रख दिया जाता है या नदी, सरोवर में प्रवाहित कर दिया जाता है। मनोकामना के अनुसार दीप में बत्तियों की मात्रा का निर्धारण किया जाता है। आटे को दिए को प्रज्जवलित कर पीपल या बढ़ के पत्ते पर रखकर नदी में प्रवाहित किया जाता है। देवालय में दीपदान अन्न पर रखकर किया जाता है। बगैर धान्य के दीप धरती पर रखने से भूमि को आघात लगता है।

कब किया जाता है दीपदान

विशेष पर्वों और तिथियों पर दीपदान किया जाता है। नरक चतुर्दशी और यम द्वितीया के दिन दीपदान की परंपरा है। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति को नरक की प्राप्ति नहीं होती है। पद्मपुराण के उत्तरखंड में भगवान शिव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पांच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं।

दीपदान का महत्व

देवी लक्ष्मी की कृपा और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए, यम, शनि, राहु और केतु के कोप से बचने के लिए, गृहकलह से बचने और संकटों के नाश के लिए, मोक्ष की प्राप्ति और मांगलिक कार्यों में सफलता के लिए। पितृों के मोक्ष और अकील मृत्यु के निवारण के लिए दीपदान करने का विधान है। कार्तिक मास में भगवान विष्णु या उनके अवतारों के समक्ष दीपदान करने से समस्त यज्ञों, तीर्थों और दानों का फल प्राप्त होता है।

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