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सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, दहेज केस में पति के परिजनों को आरोपी बनाने की प्रवृत्ति गलत

नई दिल्ली। जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह आदेश खारिज कर दिया, जिसमें मृतका के देवर या जेठ व सास को दहेज मृत्यु के केस में सरेंडर करने और जमानत अर्जी दायर करने का आदेश दिया गया था।

न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग

शीर्ष कोर्ट ने संबंधित मामले पर दिए आदेश में कहा कि एफआईआर में बड़ी संख्या में पति के परिवार के सदस्यों के नामों का लापरवाही से उल्लेख किया गया है, जबकि केस की विषय वस्तु अपराध में उनकी सक्रिय भागीदारी का खुलासा नहीं करती है। ऐसे में उन परिजनों के खिलाफ संज्ञान लेना न्यायोचित नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में संज्ञान लेने से न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होता है।

आरोप नहीं हुए साबित

शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मृतका के पिता द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर देवर व सास के भी खिलाफ अपराध दर्ज किया गया था, लेकिन उनकी भूमिका का कोई खास खुलासा नहीं किया गया था। दूसरे प्रतिवादी यानी मृतका के पिता के पुलिस द्वारा दर्ज बयान व अंतिम जांच रिपोर्ट में भी अस्पष्ट आरोपों के अलावा अपीलकर्ताओं की अपराध में लिप्तता साबित करने के कोई खास आरोप नहीं हैं।

सिर्फ न्यायाधीश नहीं करते न्यायाधीशों की नियुक्ति, सीजेआई एनवी रमण

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने रविवार को कहा कि यह धारणा बिल्कुल गलत है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति न्यायाधीश ही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में न्यायिक अधिकारियों के चयन के लिए अपनाई गई प्रक्रिया में एक भूमिका न्यायाधीशों की भी है। सीजेआई विजयवाड़ा में सिद्धार्थ लॉ कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में न्यायिक अधिकारियों पर हमले बढ़ रहे हैं। इतना ही नहीं, अगर न्यायाधीश किसी पार्टी के अनुकूल आदेश नहीं देते हैं तो कई बार प्रिंट व सोशल मीडिया पर भी उनके खिलाफ अभियान चलाए जाते हैं। एनवी रमण ने कहा कि न्यायिक अधिकारियों को पूर्ण स्वतंत्रता की आवश्यकता है, उन्हें न्यायपालिका के प्रति जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।

नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा न्यायाधीश

सीजेआई एनवी रमण ने कहा कि आजकल यह कहना फैशनेबल हो गया है कि न्यायाधीश ही न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। तथ्य यह है कि वे सिर्फ एक प्रक्रिया का हिस्सा हैं। इसमें कई प्राधिकरण शामिल हैं, जिनमें केंद्रीय कानून मंत्रालय, राज्य सरकारें, राज्यपाल, उच्च न्यायालय कोलेजियम, खुफिया ब्यूरो शामिल है, जिन्हें सभी उम्मीदवारों की उपयुक्तता की जांच करने के लिए नामित किया गया है।

सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए बाध्य हैं सरकारें

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कानून लागू करने वाली एजेंसियों को न्यायपालिका पर हो रहे हमलों से प्रभावी ढंग से निपटने की जरूरत है। सरकारें एक सुरक्षित वातावरण बनाने के लिए बाध्य हैं ताकि न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी निडर होकर काम कर सकें।

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