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जब महाबलि हनुमान ने अर्जुन औऱ भीम का घमंड किया था चूर

Hanumanji: श्रीराम भक्त महाबली हनुमान का रामायण और रामचरितमानस के अलावा कई स्तुतियों और धर्मग्रंथों में बड़ा गुणगान किया गया है। श्रीराम का स्मरण हनुमानजी के बिना असंभव है। रामायण के प्रमुख चरित्र हनुमानजी हैं। पवनसुत हनुमान ने महाभारत में भी सत्य का साथ दिया था और पांडवों की मदद की थी।

भीम का घमंड किया था चूर

महाभारत में हनुमानजी का दो बार वर्णन आता है। एक बार वह महाबली भीम से पांडव के वनवास के समय मिले थे। भीम और हनुमान दोनों पवन देव के पुत्र थे। इसलिए दोनों को भाई भी कहा गया है। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार एक बार द्रौपदी ने भीम से सौगंधिका फूल लाने के लिए कहा। भीम उस फूल को ढूंढने के लिए जंगल में गए। रास्ते में भीम को एक बड़ा सा वृद्ध वानर लेटा हुआ मिला। भीम ने वानर से कहा कि वे अपनी पूंछ हटा लें ताकि वह रास्ते से निकल जाए। इस पर वृद्ध वानर ने कहा कि वह बहुत वृद्ध है और अपनी पूंछ हटाने में असमर्थ है। तब भीम ने अपनी शक्ति के घमंड में चूर होकर वृद्ध वानर की पूँछ हटाने के लिए पूरी ताकत लगा दी, लेकिन पूंछ जरा भी नहीं हिली। उस समय भीम को एहसास हुआ कि यह कोई साधारण वानर नहीं है। भीम ने उनसे पूछा की आप कौन है, तब हनुमान अपने असली रूप में प्रकट हुए और भीम को आशीर्वाद दिया।

अर्जुन को किया पराजित

एक दिन भगवान श्रीकृष्ण को छोड़कर अकेले अर्जुन वन में विहार करने के लिए गए थे। विचरण करते हुए वह दक्षिण दिशा में रामेश्वरम चले गये। वहां पर उन्होंने भगवान श्रीराम के द्वारा बनाया हुआ सेतु दिखाई दिया। यह देख कर अर्जुन ने कहा कीं उन्हें सेतु बनाने के लिए वानर सेना की क्या आवश्यकता थी जब की वे स्वयं ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। उनके स्थान पर मैं होता तो इस सेतु का निर्माण बाणों से कर देता। अर्जुन के वचन सुनकर हनुमानजी ने कहा कि बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार संभल नहीं सकता है। हनुमानजी के वचन सुनकर अर्जुन ने कहा कि यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा और यदि नहीं टूटता है तो आपको अग्नि में प्रवेश करना पड़ेगा। हनुमानजी ने कहा मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा।

बाणों से बना सेतु चरमराया

अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु का निर्माण कर दिया, लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया। हनुमान श्रीराम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए। पहला पग रखते ही सेतु डगमगाने लगा और दूसरा पैर रखने के साथ ही सेतु चरमरा गया। पराजित होकर अर्जुन जैसे ही अग्नि समाधि लेने के लिए चले वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और अर्जुन से कहा कि वह फिर से सेतु बनाये लेकिन इस बार वे श्री राम का नाम लेकर सेतु बनाये जिससे वह नहीं टूटेगा।

श्रीराम का स्मरण कर किया सेतु निर्माण

अर्जुन ने श्रीकृष्ण की सलाह के अनुसार भगवान श्रीराम का स्मरण कर दूसरी बार सेतु का निर्माण किया। हनुमानजी ने फिर से उस पुल पर चहल-कदमी की, लेकिन इस बार वह श्रीराम के रक्षा कवच से बंधा हुआ था इसलिए बेजोड़ बना रहा और नहीं टूटा। अर्जुन की रामभक्ति से प्रसन्न होकर हनुमानजी ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे। इसीलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज में हनुमान विराजमान हुए और अंत तक उनकी रक्षा की।

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