Sarva Pitru Amavasya 2021: सनातन संस्कृति में पितृपक्ष की अंतिम तिथि सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या का विशेष महत्व है। इस दिन पितृों को तृप्त कर उनको विदा किया जाता है। शास्त्रोक्त मान्यता है कि यदि श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर पितृ की श्राद्ध तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्रों में सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या की एक कथा का वर्णन किया गया है।
देवताओं के पितृगण की पुत्री अक्षदा
सोमपथ लोक में निवास करने वाले देवताओं के पितृगण ‘अग्निष्वात्त’ की ‘अक्षोदा’ नाम की कन्या थी, जो एक नदी के रूप में थी। मत्स्य पुराण में अच्छोद सरोवर और अच्छोदा नदी का उल्लेख मिलता है। एक बार अक्षोदा ने एक हजार वर्ष तक घोर तप किया। अक्षोदा के तप से प्रसन्न होकर देवताओं के पितृगण अग्निष्वात्त और और बर्हिषपद अपने अन्य पितृगण अमावसु के साथ अक्षोदा को वरदान देने के लिए आश्विन अमावस्या के दिन अक्षोदा के समक्ष उपस्थित हुए।
अक्षोदा ने की घोर तपस्या
देवपितृों ने अक्षोदा से कहा पुत्री हम सभी तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हैं, इसलिए जो चाहो, वर मांग लो’, किंतु अक्षोदा ने अपने पितृों की ओर ध्यान नहीं दिया और वह अपने तेजस्वी पितृ अमावसु को निहारती रही। पितृों के बारम्बार कहने पर उसने कहा, ‘ हे भगवन क्या आप सच में मुझे वरदान देना चाहते हैं? तब तेजस्वी पितृ अमावसु ने वरदान का वचन दिया। तब अक्षोदा ने कहा,‘ भगवन मैं आपके साथ आनंद के क्षण व्यतित करना चाहती हूं।’
पितृों ने दिया अक्षोदा का श्राप
अक्षोदा के इस तरह के वर मांगने पर सभी पितृ क्रोधित हो गए और उन्होंने अक्षोदा को श्राप दिया कि वह पितृ लोक से पतित होकर पृथ्वी लोक पर चली जाएगी। इस श्राप को सुनकर अक्षोदा पितृों के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगी। अक्षदा के पश्चाताप और विलाप करने पर पितृों ने कहा कि म पतित योनि में श्राप मिलने के कारण मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लोगी और भगवान ब्रह्मा के वंशज महर्षि पाराशर तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे। तत्पश्चात तुम्हारे गर्भ से भगवान व्यास का जन्म होगा। उसके पश्चात अन्य दिव्य वंशों में जन्म लेते हुए तुम श्राप मुक्त होकर पुन: पितृलोक में वापस आ जाओगी। पितरों के इस तरह कहे जाने पर अक्षोदा व्याकुलता और शोक खत्म हुआ।
अमावस्या के श्राद्ध का है बड़ा महत्व
अमावसु के ब्रह्मचर्य और धैर्य की सभी पितृों ने प्रशंसा की और उनको वरदान दिया कि यह अमावस्या की तिथि ‘अमावसु’ के नाम से जानी जाएगी। जो प्राणी किसी भी दिन श्राद्ध न कर पाए वह केवल अमावस्या के दिन श्राद्धकर्म करके सभी चौदह दिनों के पितृकर्म का पुण्य प्राप्त करते हुए अपने पितरों को तृप्त कर सकता है। इसलिए पितृपक्ष की अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है और इस तिथि को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से जाना जाता है। अक्षदा पाप के प्रायश्चित के लिए महर्षि पराशर की पत्नी एवं वेदव्यास की माता सत्यवती बनी थी। वे महाराज शांतनु की पत्नी थी और उन्होंने दो पुत्र चित्रांगद तथा विचित्र वीर्य को जन्म दिया था इन्हीं के नाम से कलयुग में ‘अष्टका श्राद्ध’ मनाया जाता है।