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इन पत्तों का धर्मशास्त्रों में है वर्णन, प्रयोग से होती है शुभफलों की प्राप्ति

Dharma: प्रकृति पूजा हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रही है। विभिन्न अवसरों पर पत्तों, वृक्षों और लताओं की पूजा का विधान बतलाया गया है। शास्त्रों के अनुसार पूजा और उपासना में कुछ पत्तों को अति शुभ माना जाता है और देव आराधना में इनका उपयोग किया जाता है। आइए जानते हैं उपासना में प्रयोग किए जाने वाले शुभ पत्तों के बारे में।

आम का पत्ता

मांगलिक कार्यक्रम में आम के पत्ते का उपयोग किया जाता है। आम के पत्तों को कलश की स्थापना कर उसके ऊपर रखा जाता है और इन पत्तों की वंदनवार बनाकर द्वार पर लटकाई जाती है। वैदिक काल से हवन में आम की लकडि़यों का उपयोग किया जा रहा है। हनुमान जी की पूजा में आम के पत्तों का बड़ा महत्व है।

केले का पत्ता

धार्मिक कर्मकांड में केले के पत्ते को अतिशुभ माना जाता है। सनातन संस्कृति में केले के पत्ते को पूज्य और पवित्र माना गया है। पूजा-पाठ के दौरान केले के फल, तने और पत्ते का प्रयोग किया जाता है। मान्यता है कि केले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है इसलिए सत्यनारायण भगवान की कथा में केले के पत्तों का मंडप बनाया जाता है। बृहस्पति देव की पूजा में केले के वृक्ष का बड़ा महत्व है।

तुलसी का पत्ता

तुलसी के पौधे और उसके पत्तों को धर्मशास्त्रों में सबसे पवित्र माना गया है। समस्त मांगलिक कार्यों में तुलसी के पत्तों का उपयोग किया जाता है। देवी-देवता को नैवेद्य लगाने में तुलसी दल का होना आवश्यक है। तुलसी के पत्ते को देवकर्म में 11 दिनों तक उपयोग कर सकते हैं। 11 दिनों तक गंगाजल में धोकर आप भगवान को अर्पित कर सकते हैं, लेकिन , गणपति और भैरव महाराज को तुलसी अर्पित नहीं करना चाहिए।

पान का पत्ता

पान के पत्ते के बगैर मांगलिक कार्य अधूरे रहते हैं। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय पहली बार देवताओं ने पान के पत्ते का उपयोग किया था और इसमे विभिन्न देवी-देवताओं का वास होता है। पान के पत्ते के ऊपरी हिस्से में इंद्र और शुक्र देव मध्य में मां सरस्वती, निचले हिस्से में मां महालक्ष्मी और महादेव पान के पत्ते के अंदर वास करते हैं। हवन और पूजा की प्रमुख सामग्रियों में से एक पान या तांबूल है।

बिल्वपत्र

महादेव को बिल्वपत्र अतिप्रिय है और बिल्वपत्र के बगैर भोलेनाथ की आराधना अधूरी मानी जाती है। मान्यता है कि बिल्ववृक्ष में देवी महालक्ष्मी का वास होता है और शिवलिंग पर बिल्वपत्र समर्पित करने से अखंड लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में कहा गया है कि बिल्वपत्र चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और संक्रांति पर नहीं तोड़ना चाहिए। बिल्वपत्र की त्तियां तोड़नी चाहिए, न कि टहनी।

शमीपत्र

शमीवृक्ष और शमीपत्र को शास्त्रों में शुभ फलदायी माना गया है। मान्यता है कि प्रत्येक शनिवार को भगवान शनि को शमी का पत्ता अर्पित करने से शनिदोष का निवारण होता है। भगवान गणेश और महादेव को भी शमीपत्र चढ़ाने का विधान है। शमी का पौधा घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने में लगाने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

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