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Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर का बदला इतिहास, 34 साल में पहली बार निकला मुहर्रम जुलूस

Jammu and Kashmir: जम्मू-कश्मीर का बदला इतिहास, 34 साल में पहली बार निकला मुहर्रम जुलूस

Muharram procession in Jammu and Kashmir: Jammu and Kashmir के लिए 27 जुलाई यानी गुरुवार का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन मुहर्रम का जुलूस निकाला गया। ऐसा 34 साल में पहली बार हुआ है। पैगंबर मुहम्मद के पोते हजरत इमाम हुसैन की जयकारे सड़कों पर लगे। हजरत इमाम हुसैन को याद करते हुए लोगों ने निर्भीक होकर मुहर्रम का जुलूस निकाला। श्रीनगर के गुरु बाजार और लालचौक के सटे पारंपरिक मार्ग से आठ मुहर्रम जुलूस निकाला गया।

इससे स्पष्ट हो गया है कि Jammu and Kashmir में हालात बदले हैं। वहां स्थिति सामान्य हो रही है। इस मुहर्रम जुलूस में शिया समुदाय के सैकड़ों लोग ने भाग लिया। सभी ने काले कपड़े पहन रखे थे। न कोई राजनीति नारा सुनाई दिया। न ही किसी ने आजादी समर्थक या राष्ट्रविरोधी नारेबाजी की। यहां तक की अलगाववादियों के झंडे-पोस्टर भी नहीं दिखे। पूरा जुलूस शांतिपूर्ण निकाला गया।

Jammu and Kashmir के इन मार्गों से निकला जुलूस

मुहर्रम का जुलूस श्रीनगर के जहांगीर चौक, बडशाह चौक, सेंट्रल टेलीग्राफ कार्यालय, मौलाना आजाद रोड से होकर डलगेट पर पहुंचकर संपन्न हुआ। बता दें Jammu and Kashmir के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के निर्देश पर प्रशासन ने 1988 के बाद पहली बार मुहर्रम का ताजिया जुलूस निकाला गया। श्रीनगर में सिविल सचिवालय के पास गुरु बाजार से सिविल लाइंस की ओर से डलगेट तक अपने पारंपरिक मार्ग पर निकालने की मंजूरी दी गई थी।

इन कारणों से पहले लगा था प्रतिबंध

कश्मीर में 1988 के बाद आठ मुहर्रम जुलूस पर प्रतिबंध लगाया गया था। 1989 में मुहर्रम के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह राष्ट्रपति जिया उल हक की मौत की वजह से कश्मीर में हालात को देखकर आठ मुहर्रम का जुलूस नहीं निकालने दिया गया था। 1990 में आतंकी हिंसा और अलगाववाद का दौर शुरू हो गया था।

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