लहसुन उत्पादक किसानों को उपज का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है. मध्य प्रदेश के मंदसौर की कृषि उपज मंडियों में इन दिनों लहसुन के दाम काफी कम चल रहे हैं. बंपर आवक के बावजूद किसानों को कौड़ियों के दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है. कुछ किसानों का आरोप है कि जो भाव मिल रहे हैं, उसमें लागत तो दूर की बात है, फसल कटाई और मंडी तक फसल लाने का भाड़ा तक नहीं मिल पा रहा है. उधर, व्यापारियों का कहना है कि कृषि उपज मंडी में माल बाजार भाव से गुणवत्ता के हिसाब से उचित मूल्य पर खरीद किया जा रहा है।
बतादें कि मध्य प्रदेश में इस बार लहसुन की पैदावार तो हुई लेकिन फसल खराब होने के कारण किसानों को मंडी में सही दाम नहीं मिल रहा है, जिस के कारण वे काफी परेशान हैं। इस वर्ष मार्च के महीने में हुई ओलावृष्टि और उसके बाद थ्रिप्स बीमारी की चपेट में आयी लहसुन की फसल को भारी नुकसान हुआ है।
मध्य प्रदेश के बागवानी विभाग के 2021 -22 के प्रथम अनुमान के मुताबिक राज्य में 1 लाख 96 हजार हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई, जिस से 20 लाख 16 हाज़र मीट्रिक टन उपज की सम्भावना आंकी गई थी। राजगढ़ जिले के शम्भुलाल ने मनसा मंडी में 116 रुपए प्रति क्विंटल के रेट पर 5.5 क्विंटल लहसुन बेची। उन्होंने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि जब वह लहसुन लेकर मंडी गए तो उन्हें बताया गया कि लहसुन की क्वालिटी हल्की है इसलिए दाम कम मिलेगा। वह खुद कहते हैं, “फसल में इस बार बीमारी लग गई थी, हरापन आ गया था इसलिए ख़राब हो गई। पहले ओले गिरे फिर बीमारी लगने के बाद जो बचा माल था उसका भी दाम नहीं मिला”।
उन्होंने एक बीघे में 20,000 रुपए की लागत लगा कर फसल तैयार की थी, और अब नुकसान उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो अच्छी गुणवत्ता वाला माल है उस के तो 2500 रुपए तक भी मिले हैं। इंदौर मंडी के सचिव नरेश परमार का कहना है की इस बार मंडी में लाई जा रही लहसुन बहुत खराब गुणवत्ता की है। “कुछ किसानों ने अपनी पिछले साल की फसल निकाली है जिस में कली ही नहीं है। कई लोगों की फसल में कीड़े लगे हुए है। साथ ही, ओला-वृष्टि की वजह से लहसुन की क्वालिटी पर फर्क पड़ा है। इस वजह से इस तरह की फसल के कम दाम मिल रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र-2, सीतापुर, उत्तर प्रदेश के वैज्ञानिक एवं इंचार्ज दया शंकर श्रीवास्तव बताते हैं की थ्रिप्स कीट पौधों के कोमल भागों से रस चूस कर उनको कमज़ोर कर देता है जिस के कारण फलन (या फ्रूटिंग) पर असर पड़ता है। “ये कीट सकिंग पेस्ट की श्रेणी में आते हैं और बहुत तेज़ी से बढ़ते हैं। यदि ये एक खेत में लग जाएं तो आस-पास के दूसरे खेतों को भी ख़राब कर देते हैं,” श्रीवास्तव ने डाउन तो अर्थ से बातचीत में बताया, “ये पेस्ट पत्तों, पंखुड़ियों और फलों का रास चूस लेते है जिस से पौधों में पोषण की कमी हो जाती है और वे मर जाते हैं जिस से उपज प्रभावित होती है।”