लखनऊ। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सूबे की बिजली व्यवस्था को बेहतर करने के लिए पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निगम का निजीकरण करने की तरफ कदम बढ़ा रही हैं. सरकार की इस मंशा को पूरा करने के लिए पावर कॉर्पोरेशन ने पूर्वांचल व दक्षिणांचल बिजली निगम के निजीकरण को लेकर कार्रवाई शुरू ही है. वही दूसरी तरफ दक्षिणांचल और पूर्वांचल के निजीकरण के विरोध में ऊर्जा संगठनों के साथ ही अन्य सरकारी विभागों के कर्मचारी संगठन भी अब लामबंद होने लगे हैं. सूबे के 27 श्रम संघों तथा राज्य कर्मचारी संगठनों और शिक्षक संगठनों ने निजीकरण के विरोध में उतरने का ऐलान करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से आग्रह किया है कि पूर्वांचल व दक्षिणांचल बिजली निगम के निजीकरण प्रस्ताव को निरस्त किया जाए. अन्यथा मजबूर होकर कर्मचारियों को सरकार के फैसले के खिलाफ सड़क पर उतरना होगा. 

  • दो बिजली निगमों के निजीकरण का विरोध करेंगे सरकारी कर्मचारी 
  • निगमों के निजीकरण से 50 हजार कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी
  • पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निगम के निजीकरण से बिजली महंगी होगी

निजीकरण के विरोध में अगर सरकारी कर्मचारी संगठन सड़कों पर उतरे तो यह योगी सरकार की इमेज के लिए ठीक नहीं होगा. अगले वर्ष होने वाले महाकुंभ के आयोजन के पहले अगर सरकार ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निगम का निजीकरण करने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का प्रयास किया तो सरकारी कर्मचारी सड़क पर तो उतरेंगे ही पावर कार्पोरेशन के भी कर्मचारी इसका विरोध करेंगे. इसका असर महाकुंभ के दौरान बिजली की आपूर्ति पर भी पड़ सकता है. फिलहाल बिजली कर्मचारी पूर्वांचल और दक्षिणांचल बिजली निगम के निजीकरण का विरोध कर रहे हैं. राज्य उपभोक्ता परिषद के परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा कहते हैं, पावर कारपोरेशन इन निगमों का निजलीकरण किए जाने में इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रहा हैं. मुख्यमंत्री को इस पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच करनी चाहिए. उन्होने यह भी मांग की है कि इस मामले में कैबिनेट से जल्दबाजी में कोई प्रस्ताव को पास न किया जाए. अवधेश कुमार का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में आदेश पारित किया जा चुका है कि पावर कारपोरेशन स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली बिजली कंपनियों को कोई भी निर्देश जारी नहीं कर सकता है. इसलिए पावर कार्पोरेशन को पूर्वांचल तथा दक्षिणांचल बिजली निगम का निजीकरण करने की कार्रवाई करने से रोका जाए. वही दूसरी तरफ बिजली क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ लगातार स्वर बुलंद कर रहे पावर ऑफिसर्स एसोसिएशन ने साफ किया है कि यदि 10 दिसंबर को कैबिनेट की बैठक में यदि पीपीपी मॉडल से जुड़े प्रस्ताव को पास किया जाता है तो पूरा दिन दलित व पिछड़े वर्ग के अभियंता काली पट्टी बांधकर विरोध दर्ज कराएंगे. उपभोक्ता परिषद ने पूर्वांचल व दक्षिणांचल बिजली निगम के निजीकरण के प्रस्ताव को असंवैधानिक करार दिया है. 

निजीकरण से उपभोक्ताओं को मिलेगी महंगी बिजली

उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन निविदा/संविदा कर्मचारी संघ ने आरोप लगाया है कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल डिस्कॉम के निजीकरण से लगभग 50 हजार बिजली आउटसोर्स कर्मचारियों की नौकरी चली जाएगी. संघ के महामंत्री देवेंद्र कुमार के मुताबिक, निगमों को निजी हाथों में देने से करीब 50 हजार बिजली के आउटसोर्स कर्मचारी बेरोजगार होंगे, जो पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से अल्प वेतन पर काम करते चले आ रहे हैं,  वहीं दूसरी तरफ उपभोक्ताओं को महंगी बिजली से आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. उनका यह भी कहना है कि मध्यांचल और पश्चिमांचल निगम में बिजली आउटसोर्स कर्मचारियों की छंटनी करने लगे हैं. इससे ऐसे परिवारों के सामने परिवार के भरण-पोषण करने का संकट पैदा हो गया है.