इंदौर। आज विश्व साक्षरता दिवस है। साक्षरता का मतलब सिर्फ पढ़ना-लिखना आना ही नहीं होता, अपने अधिकारों को जानना भी पढ़े-लिखे होने की निशानी है। हर शख्स को अपने हक के बारे में पता होना ही चाहिए। यह आपको बेवजह परेशान होने से बचाता है तो ठगे जाने से भी। आप चाहे ट्रेन से सफर कर रहे हों, किसी वजह से थाने के चक्कर लग रहे हों, किसी संस्थान से फीस रिफंड का मामला हो या फिर अस्पताल में इलाज कराने का, हर जगह यह ज्ञान काम आता है। इस समय बीमारियों का दौर चल रहा है। ऐसे में हमें यह पता होना बेहद जरूरी है कि अस्पताल में हमारे क्या अधिकार हैं।
अस्पताल में हमारे अधिकार
कोई भी अस्पताल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, मरीज को फौरन इलाज देने से मना नहीं कर सकता। इमरजेंसी में पेशंट से शुरुआती इलाज के लिए अस्पताल फौरन ही पैसे की मांग भी नहीं कर सकता। अगर दवाई या इलाज को लेकर कोई शिकायत है तो सबसे पहले अस्पताल प्रशासन से इसकी शिकायत करें और सुनवाई न हो तो कानूनी कार्रवाई करें। किसी भी अस्पताल में मरीज जब इलाज के लिए पैसे देता है तो उसी वक्त वह कंज्यूमर हो जाता है। ऐसे में कुछ गलत होने पर अस्पताल की किसी भी तरह की शिकायत मरीज या उसके परिजन कंज्यूमर कोर्ट में कर सकते हैं।
तो नहीं रोक सकता अस्पताल
कई बार बिल न चुकाए जाने की वजह से अस्पताल मरीज को डिस्चार्ज नहीं करता। बिल पूरा न दिए जाने की सूरत में कई बार लाश तक नहीं ले जाने दी जाती। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे गैरकानूनी करार दिया है। अस्पताल को मरीज को जबरन रोकने का कोई हक नहीं है।
दवा दुकान के लिए दबाव नहीं
अकसर शिकायत रहती है कि अस्पताल अपने ओपीडी मरीजों को दवा की पर्ची देते वक्त दबाव बनाते हैं कि दवा अस्पताल की दुकान से ही लें। आप इससे मना कर सकते हैं।
ये भी हैं अधिकार
- अगर कोई मरीज, किसी डॉक्टर के इलाज से संतुष्ट नहीं हैं तो वह उस डॉक्टर से इलाज करवाने से इनकार कर सकता है। अस्पताल की यह जिम्मेदारी है कि इसके लिए दूसरी व्यवस्था करे।
- यदि अस्पताल मरीज को दूसरे अस्पताल में रेफर कर रहा है तो जब तक दूसरा अस्पताल उस मरीज को स्वीकार नहीं करता, तब तक उसे रेफर नहीं माना जाएगा।
- मरीज और उसके परिवारवालों को यह हक है कि वे संबंधित अस्पताल से मरीज की बीमारी से जुड़े तमाम दस्तावेज की मांग कर सकते हैं।
-मरीज की किसी भी तरह की सर्जरी करने से पहले डॉक्टर को उससे या उसकी देखरेख कर रहे व्यक्ति से मंजूरी लेनी जरूरी है।
स्कूल-कॉलेज में ये अधिकार
- कोई भी शिक्षा संस्थान पूरे कोर्स की फीस एक साथ नहीं ले सकता। वह एक सेशन या एक साल की फीस ही एक साथ ले सकता है।
- किसी छात्र के संस्थान छोड़ने की वाजिब वजह पर उसे सही अनुपात में फीस काट कर बाकी रकम लौटाई जानी चाहिए। इसी मामले में यूजीसी की गाइडलाइंस भी हैं।
- संस्थान छोड़ने पर कोई भी संस्थान मूल प्रमाणपत्र नहीं रोक सकता।
-रैगिंग को रोकने की जिम्मेदारी हर शिक्षा संस्थान की है।