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पुण्यतिथि विशेष: जब एक वोट से गिर गई थी अटल सरकार

तुषार रामड़िया. “एक” गणित की गिनती में सबसे छोटा अंक है। लेकिन एक की वेल्यू इतनी होती है कि फर्श से अर्श का और हार से जीत का फासला तय करदें। साल था 1999 और तारिक थी 16 अप्रैल जब भारत के सबसे जनप्रिय प्रधानमंत्रियों में से एक अटल बिहारी वाजपाई की सरकार एक वोट से गिर गई थी। कहते है की 15 अप्रेल की रात राजनीति के सारे दिगज्जों की नींद उडी हुई थी, अलग-अलग़ मीटिंग में अलग-अलग तरह से भारत का भविष्य लिखा जा रहा था।

जब मायावती ने बोला लाल बटन दबाओ

“लाल बटन दबाओ” मायावती के ज़बान से निकले यह तीन शब्द दिल्ली से निकले और पुरे भारत में गूंज उठे। दरअसल राष्ट्रपति के आदेश के बाद वाजपाई सरकार बहुमत सिद्ध करने की होड़ में लगी हुई थी, सूत्रों की माने तो सरकार की तरफ़ से बीजेपी सांसद रंगराजन कुमारमंगलम ने मायावती को मनाने के लिए यहां तक आश्वासन दे दिया कि अगर उन्होंने पहले से तय स्क्रिप्ट पर काम किया तो वो शाम तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन सकती हैं। जिसके बाद हुई शरद पवार और मायावती की मुलाकात हुई। जिसमें मायावती ने पूछा की अगर उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ वोट दिया तो क्या सरकार गिर जाएगी? और पवार ने जवाब दिया हां। इसी के बाद जब वोट देने का समय आया तो मायावती ने अपने सांसदों की तरफ़ देखा और ज़ोर से चिल्लाईं “लाल बटन दबाओ”

नहीं बच पाई अटल सरकार

सभी की नज़रे इलेक्ट्रॉनिक स्कोर बोर्ड तक टीकी हुई थी और परिणाम आने पर पूरा सदन अचंभित रह गया क्योंकि वाजपेई सरकार के पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 मत पड़े थे। अटल सरकार के बहुमत के रास्ते में कई बेरिकेट्स थे, जिसमें से एक बेरिकेट जयललिता के नाम से भी जुड़ा हुआ है।

जयललिता के सभी मंत्रियों ने दिए थे इस्तीफे

दरअसल जयललिता चाहती थीं कि उनके ख़िलाफ़ सभी मुकदमे वापस लिए जाएं, तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार को बर्ख़ास्त किया जाए और सुब्रमण्यम स्वामी को वित्त मंत्री बनाने की भी मांग की थी। असल में जयललिता चाहती थीं कि उनके ख़िलाफ़ चल रहे इन्कम टैक्स केसों में उन्हें मदद मिले, इसलिए उन्होंने अटल सरकार को समर्थन देने के लिए यह मांगे रखी थी। लेकिन अटल बिहारी वाजपेई इन मांगो के लिए राज़ी नहीं हुए। और 6 अप्रैल को जयललिता के सभी मंत्रियों ने वाजपेयी को अपने इस्तीफ़े दे दिए।

मायावती का अटल जी को समर्थन मुस्लिम वोटरों को नहीं था पसंद

इस सियासी अखाड़े में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कॉशीराम का भी नाम आता है। कॉशीराम ने अटल बिहारी वाजपाई से फोन पर कहा की वो दिल्ली से बाहर जा रहे हैं, उनकी पार्टी उनका समर्थन तो नहीं कर सकती लेकिन उनके ख़िलाफ़ वोट भी नहीं करेगी। जिसके बाद मतदान के कुछ घंटे पहले देर रात बीएसपी के सांसद आरिफ़ मोहम्मद ख़ाँ और अकबर डंपी ने मायावती को फ़ोन कर कहा कि अगर उन्हें बीजेपी की सरकार को बचाते हुए देखा गया तो उनके मुस्लिम मतदाता इसे पसंद नहीं करेंगे।

मायावती ने रात दो बजे डंपी और आरिफ़ को फ़ोन कर बताया कि वोट करते समय उनकी चिंता को ध्यान में रखा जाएगा। इस बीच सोनिया गाँधी ने भी मायावती को खुद फ़ोन किया और अटल सरकार को गिराने का पूरा ख़ाका तैयार हो गया।

भारतीय राजनीति की वह रात जब कोई नेता नहीं सोया

अभी इस सियासी घटनाक्रम में कई घटनाएं, कई नाम बचे है, ओमप्रकाश चौटाला से लेकर जॉर्ज फ़र्नांडिस जैसे कई नेताओं के किस्सें इसमें शामिल है। लेकिन बात निकली तो दूर तलक जाएगी, बहुमत न सिद्ध करने के बाद अटल बिहारी वाजपाई ने कहा था कि आज हमारे पास बहुमत नहीं है, लेकिन एक दिन आएगा जिस दिन भारतीय जनता पार्टी के पास पूर्ण बहुमत होगा। और यह बात 2014 और 2019 के लोक सभा चुनाव में सही सिद्ध हुई जब भरतीय जनता पार्टी ने ऐतिहासिक पहले 282 और फिर 303 सीट के सतह पूर्ण बहुमत प्राप्त किया। अटल जी की इन पंक्तियों के साथ आपसे विदा लेते है। टूटे हुए सपनों की सुने कौन सिसकी, अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, गीत नया गाता हूं।

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