मृदुभाषी न्यूज। एकादशी तिथि का सनातन संस्कृति में विशेष महत्व है. शास्त्रोक्त मान्यता है कि इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है. इस लोक सभी सुखों की प्राप्ति होकर अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है. उत्पन्ना एकादशी के व्रत को पुण्यदायी और समस्त व्रतों में सर्वश्रेष्ठ बतलाया गया है। इस साल यह एकादशी 11 दिसंबर शुक्रवार को है।
श्रीहरी को अतिप्रिय है तुलसी दल
उत्पन्ना एकादशी तिथि का व्रत करने के लिए इस तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान श्रीहरी की पूजा की तैयारी करना चाहिए। भगवान विष्णु को पंचामृत और उसके बाद पवित्र जल से स्नान करवाना चाहिए।
एक पाट पर उनकी प्रतिमा को स्थापित कर चंदन, कुंकुम अबीर, गुलाल, अक्षत आदि से पूजा करना चाहिए। भगवान लक्ष्मीनारायण को पंचामृत, पंचमेवा, नारियल, ऋतुफल, मिठाई और तुलसी दल का भोग लगाना चाहिए। श्रीहरी को तुलसी अतिप्रिय है इसलिए तुलसीदल अवश्य अर्पित करना चाहिए। रात्रि में दीपदान करना चाहिए। दूसरे दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करना चाहिए।
तीर्थ स्नान का मिलता है फल
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से सभी तरह के दुखों का नाश होता है। उत्पन्ना एकादशी के व्रत को निर्जला करने से भगवान श्रीहरी के चरणों में स्थान मिलता है और इस लोक में सभी तीर्थों के पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन किया गया दान अनन्त गुना फल प्रदान करता है। उत्पन्ना एकादशी के व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ, तीर्थ स्नान और दान आदि करने से भी ज्यादा पुण्य मिलता है। उत्पन्ना एकादशी के व्रत की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी और श्रीकृष्ण ने इस व्रत का बड़ा महत्व बतलाया है।