हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को वट पूर्णिमा व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 14 जून को है। इस दिन सुहागिन महिलाएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत की तरह ही व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। ये व्रत सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए, संतान प्राप्ति के लिए और घर-परिवार के सुख-सौभाग्य में वृद्धि के लिए रखती हैं। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, स्नान-दान की प्रकिया का महत्व उसी दिन होता है, जिस दिन तिथि सूर्यादय के समय मौजूद हो। अतः 14 जून को ही पूर्णिमा का व्रत स्नान-दान की प्रक्रिया कि जायेगी। ऐसे में आइए जानते हैं वट पूर्णिमा व्रत का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
वट पूर्णिमा व्रत
13 जून रात 09 बजकर 02 मिनट पर ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि प्रारंभ होगी.
14 जून शाम 05 बजकर 21 मिनट पर ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी.
वट पूर्णिमा व्रत 2022 पूजा का मुहूर्त
साध्य योग: 14 जून, प्रात 09 बजकर 40 मिनट तक, उसके बाद से शुभ योग प्रारंभ
ज्येष्ठा नक्षत्र: सुबह से शाम 06 बजकर 32 तक, उसके बाद मूल नक्षत्र प्रारंभ
करण: बव, सुबह 07 बजकर 13 मिनट से शाम 05 बजकर 21 मिनट तक
वट पूर्णिमा व्रत के दिन साध्य और शुभ योग के साथ ज्येष्ठा नक्षत्र और बव करण का योग बन रहा है. ये योग, नक्षत्र और करण शुभ कार्यों के दिन अच्छे माने जाते हैं. इस दिन आप वट पूर्णिमा व्रत की पूजा सुबह 07 बजकर 13 मिनट के बादे से करें, तो अच्छा रहेगाा. इस दिन का शुभ समय 11 बजकर 54 मिनट से दोपहर 12 बजकर 49 मिनट तक है. इस दिन का राहुकाल शाम 03 बजकर 51 मिनट से शाम 05 बजकर 35 मिनट तक है. राहुकाल के समय में पूजा पाठ से बचा जाता है. इस समय कुछ विशेष पूजा ही किए जाते हैं.
वट पूर्णिमा व्रत की पूजा विधि
इस दिन प्रात: स्नान आदि के बाद सुहागन महिलाएं पति के दीर्घायु के लिए व्रत और पूजा करती हैं. इस दिन शुभ मुहूर्त में वट वृक्ष, सत्यवान और सावित्री की पूजा करते हैं. वट वृक्ष, सत्यवान और सावित्री को फूल, अक्षत्, धूप, दीप, गंध और अन्य पूजा सामग्री अर्पित करते हैं.
फिर वट वृक्ष की 7 बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेटते हैं और वट पूर्णिमा व्रत की कथा सुनते हैं. महिलाएं सावित्री माता से सुहाग की रक्षा और सुखमय जीवन का आशीर्वाद मांगती हैं.
पति की आयु लंबी हो
सत्यवान जब जंगल में लकड़ियां काटने जाते हैं, तो सावित्री भी साथ जाती हैं. पेड़ पर चढ़ते समय उनके सिर में तेज दर्द होता है, जिससे वे वट वृक्ष के नीचे आकर सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट जाते हैं. यमराज उनके प्राण हरकर ले जाने लगते हैं, तो सावित्री भी उनके पीछे पीछे जाने लगती हैं. उनके पति पतिव्रता धर्म से प्रभावित होकर यमराज सावित्री को 3 वरदान देते हैं, जिसमें सत्यवान के 100 पुत्रों की माता होने का भी वरदान होता है. सत्यवान के मृत रहते यह वरदान फलित नहीं होता, इसलिए यमराज ने उनके प्राण वापस कर दिए. इस वजह से महिलाएं इस दिन वट पूर्णिमा व्रत रखती हैं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो.