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तिलक है शास्त्रोक्त परंपरा का हिस्सा, जानिए इसका महत्व

Dharam: अर्थात तिलक के बिना ही यदि तीर्थ स्नान, जप कर्म, दानकर्म, यज्ञ होमादि, पितृ हेतु श्राद्ध कर्म तथा देवों का पुजनार्चन कर्म किया जाता है तो कर्म का फल नहीं मिलता है अर्थात कर्म निष्फल रहता है।

तिलक प्राप्त होती है शुभता

तिलक लगाने की परंपरा को हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है। किसी भी मंगल कार्य, धार्मिक उत्सव का प्रारंभ तिलक लगाकर किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार बगैर तिलक के किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ करने से अशुभता का संचार होता है और शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है। इसलिए धर्म शास्त्रों में तिलक लगाकर धार्मिक कर्मों के करने का विधान बतलाया गया है।

मानव शरीर में है ऊर्जा का भंडार

किसी भी पूजा-अनुष्ठान का प्रारंभ पुरोहित मस्तक पर तिलक लगाकर करते हैं। इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों कारण हैं। मानव शरीर में सूक्ष्म ऊर्जा के सात केंद्र होते हैं। विपुल शक्ति के इन भंडारों को ‘चक्र’ कहा जाता है। मस्तक के बीच में आज्ञाचक्र स्थित होता है। इस भाग का शरीर में विशेष स्थान है। यहां पर शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का मिलन होता है। इसलिए इस स्थान को त्रिवेणी या संगम भी कहा जाता है। इस स्थान को गुरु स्थान भी कहा गया है और इसको दिव्य नेत्र या तीसरा नेत्र भी माना जाता है। शरीर की समस्त क्रियाकलापों का संचालन यहीं से होता है। योग और ध्यान करते समय मन को एकाग्र करने की जिम्मेदारी भी इसी स्थान की होती है। इस स्थान पर तिलक लगाने से आज्ञाचक्र जाग्रत होता है और मानव के ओज और तेज में वृद्धि होती है।

पीनियल ग्रंथि में होता है अमृत का वास

तिलक लगाने का विधान आध्यात्म के साथ विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है। जानकारों का यह भी कहना है कि मस्तक में जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है वहां पर पीनियल ग्रंथि होती है। इस स्थान पर अमृत का वास होता है । इसका स्त्राव सोमरस के बराबर माना गया है । इसके स्पर्श से मस्तिष्क में ऊर्जा की अनुभूति होती है। तिलक लगाने से शरीर में सेराटोनिन और बीटा एंडोर्फिन का स्त्राव संतुलिक तरीके से होता है। इससे शरीर में उत्साह और उमंग का संचार होता है और सकारात्कता बढ़ती है। मस्तिष्क से जुड़ी व्याधियों से बचाव होता है और आत्मविश्वास में वृद्धि के साथ मन स्थिर और शांत रहता है। ललाट पर तिलक लगाने से मस्तिष्क में तरोताजगी बनी रहती है। मस्तिष्क के रसायनों का स्त्राव संतुलित रहने से मनोभावों में सुधार आकर अवसाद दूर होता है ।

ज्योतिषीय महत्व

तिलक को धार्मिक कार्यों में सिद्धि प्राप्त करने के लिए लगाया जाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तिलक लगाने से मानव का व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली हो जाता है। व्यक्ति तेजस्वी बनता है और उसके पापों का क्षमण होने के साथ पुण्यफलों में वृद्धि होती है। ग्रहों की शांति के लिए भी मस्तक पर तिलक लगाने का विधान है। तिलक मानव के लिए रक्षाकवच का भी कार्य करता है। ब्राह्मण को तिलक धारण करने के पश्चात ही संध्या, तर्पण आदि कर्म संपन्न करना चाहिए।

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