कैंप इस्तिकलाल। उत्तरी अफगानिस्तान में तालिबान की सक्रियता बढ़ने के कारण हजारों लोग अपने घरों से पलायन को मजबूर हो गए हैं। देश के उत्तरी हिस्से में स्थित मजार-ए-शरीफ में एक चट्टान पर बने एक अस्थायी शिविर में ऐसे करीब 50 मजबूर परिवार रह रहे हैं। वे प्लास्टिक के टेंट में चिलचिलाती गर्मी में रहते हैं, जहां दोपहर में पारा 44 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। सरकार के शरणार्थी एवं प्रत्यावर्तन मंत्रालय के अनुसार तालिबान की गतिविधियों के बढ़ने के कारण पिछले 15 दिन में 56,000 से अधिक परिवार अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं, जिनमें से अधिकतर देश के उत्तरी हिस्से से हैं।
सिर्फ अफगान शिविरों में सीमित रहेंगे शरणार्थी
अफगानिस्तान में तेजी से बदलते हालात पर चिंतित पाकिस्तान के संघीय मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि इमरान सरकार अफगान शरणार्थियों को देश के शहरों में नहीं घुसने देगी। उन्होंने कहा कि शरणार्थियों को शिविरों तक ही सीमित रखा जाएगा। चौधरी ने कहा, यदि अफगानों ने शरण भी मांगी तो भी उन्हें इस संबंध में शिविरों के अलावा अन्य तरह की मदद नहीं दी जाएगी।
हिंसा के बल सत्ता हथियाना अवैध – एस जयशंकर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान का भविष्य उसका अतीत नहीं हो सकता है। इस देश की पूरी नई पीढ़ी की अलग-अलग उम्मीदें हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि दुनिया हिंसा और बल के जरिए सत्ता हथियाने के खिलाफ है और ऐसे कृत्यों को वैध नहीं ठहराया जाएगा। विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थितियों के समाधान को लेकर कहा कि इसका शांतिवार्ता ही केवल एक जवाब है।
उन्होंने कहा कि दुनिया, क्षेत्र और अफगानी लोग एक स्वतंत्र, संतुलित, एकजुट, शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक और समृद्ध राष्ट्र चाहते हैं। उन्होंने कहा कि सभी चाहते हैं कि हिंसा और पर के खिलाफ आतंकी हमले समाप्त हों। सभी विवाद राजनीतिक वार्ता से हल किए जाएं और सभी जातीय समूहों के हितों का सम्मान किया जाए। सुनिश्चित किया जाए कि पड़ोसियों को आतंकवाद और उग्रवाद से खतरा नहीं है।
जयशंकर ने कहा कि चुनौती इन विश्वासों पर गंभीरता और ईमानदारी से काम किया जाए। ऐसी कई ताकते हैं, जो बिल्किल अलग एजेंडा के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया हिंसा और बल से सत्ता हथियाने के खिलाफ है। यह ऐसे कार्यों को वैध नहीं ठहराएगी। विदेश मंत्री ने कहा कि ईमानदारी से शांति वार्ता ही एकमात्र उत्तर है। एक स्वीकार्य समझौता जो दोहा प्रक्रिया, मॉस्को प्रारूप और इस्तांबुल प्रक्रिया को दशार्ता है, आवश्यक है। एक पूरी नई पीढ़ी की अलग-अलग उम्मीदें होती हैं। हमें उनको निराश नहीं करना चाहिए।