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इस अप्सरा से हुआ था कई महान ऋषियों की संतानों का जन्म

Dharma। इंद्र, स्वर्ग और अप्सराओं के किस्से अक्सर सुनने में आते हैं। अक्सर ऐसा हुआ है कि स्वर्ग पर जब विपदा आई है तो अप्सराओं के माध्यम से इन आपदाओं का निवारण किया गया है। ऋषि-मुनियों के तप को भंग करने के लिए भी इंद्र ने अप्सराओं का उपयोग किया है। ऐसी ही एक प्रसिद्ध, रुप लावण्यता, सौंदर्य और अपनी अदाओं से लुभाने वाली अप्सरा थी घृताची।

महर्षि वेदव्यास हुए थे मंत्रमुग्ध

शास्त्रोक्त मान्यता है कि अप्सरा घृताची के ऋषि-मुनियों और महाराजाओं के साथ संबंध बनाने से कई संतानों का जन्म हुआ था। अप्सरा घृताची माघ मास में अन्य गणों के साथ सूर्य पर स्थित होती है। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास अप्सरा घृताची को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए थे। घृताची और वेदव्यास से शुक्रदेव का जन्म हुआ। इसके बाद महर्षि च्यवन के पुत्र प्रमिति घृताची के प्रेम में पड़ गए और इन दोनों से रूरू नाम के पुत्र का जन्म हुआ। इसके बाद कन्नौज के नरेश कुशनाभ से अप्सरा घृताची के प्रेम संबंध स्थापित हुए और इन दोनों को सौ कन्याओं की प्राप्ति हुई।

भरद्वाज ऋषि का तप किया भंग

एक बार देवराज इंद्र ने भरद्वाज ऋषि के तप को भंग करने के लिए घृताची को पृथ्वीलोक पर भेजा। जब घृताची का पृथ्वी पर आगमन हुआ उस वक्त महर्षि भरद्वाज गंगा स्नान कर अपने आश्रम लौट रहे थे। भरद्वाज ऋषि की नजर घृताची पर पड़ी। घृताची उस समय गंगा स्नान कर अपने भीगे हुए वस्त्रों के साथ जल से बाहर निकल रही थी। महर्षि ने जब एक नजर घृताची पर डाली तो वे स्वयं पर नियंत्रण नही कर पाए और घृताची के प्रेम में फंस गए।

यज्ञपात्र से द्रोण का हुआ जन्म

भरद्वाज ऋषि के कामातुर होने की वजह से एक बालक का उनके यज्ञपात्र से जन्म हुआ। यज्ञपात्र का नाम द्रोण था इसलिए इस बालक का नाम द्रोण हुआ और आगे चलकर यह द्रोणाचार्य के नाम से जगत विख्यात हुए। विश्वकर्मा से भी घृताची के प्रेम संबंध स्थापित हुए थे और इन दोनों से भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। रुद्राक्ष से अप्सरा घृताची ने 10 पुत्र और 10 पुत्रियों को जन्म दिया था।

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