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केदारनाथ मंदिर की अनोखी कहानी, जब भूमि में समा गए थे भगवान शिव

तीन पहाड़ों से घिरा हुआ है केदारनाथ धाम

उत्तराखंड. केदारनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग भारत की बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। यहां हर साल बड़ी संख्या में श्रध्दालु दर्शन के लिए आते हैं। यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया हैं। ये शिलाखंड भूरे रंग की हैं। मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है।

तीन पहाड़ों से घिरा हुआ है केदारनाथ धाम

केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ , दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड। इसके साथ ही यहां पर पांच नदियां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी का संगम भी है। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है। केदारनाथ मंदिर के इतिहास  के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने कराया था। लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरू शंकराचार्य ने की। पुराणों के अनुसार केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग  है। यहां भगवान शिव भूमि में समा गए थे।

आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर हुए थे प्रकट

केदारनाथ मंदिर में शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते हैं | शिव की भूजाएं तुंगनाथ में , मुख रुद्रनाथ में , नाभि मदम्देश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुई,  इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है। हिमालय के केदार पर्वत पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार भगवान शिव ने ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित हैं।

6 माह तक जलता रहता है निरंतर दीपक

यह मंदिर एक छह फीट ऊंचे चौकोर प्लेटफार्म पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग मंडप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ हैं। बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता हैं। यहाँ स्थित स्वयम्भू शिवलिंग अति प्राचीन हैं। दीपावली महापर्व के दूसरे दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। यहां 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं। 6 माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य है की 6 माह तक दीपक निरंतर जलता रहता हैं।

बाढ़ के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा

जून 2013 के दौरान भारत के उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश राज्यों में अचानक आई बाढ़ और भूस्खलन के कारण केदारनाथ सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र रहा था। मंदिर की दीवारें गिर गई और बाढ़ में बह गयी। इस ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित हैं, लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गया था।

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