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गोल्ड मेडलिस्ट अचिंता की मजदूरी करने से गोल्ड जितने तक की कहानी, पिता के अंतिम संस्कार के नहीं थे पैसे

बर्मिंघम। बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में रविवार रात देश को तीसरा गोल्ड दिलाने वाले वेटलिफ्टर अचिंता शेउली ने अपनी सफलता का श्रेय बड़े भाई आलोक, मां पूर्णिमा और कोच को दिया है। अचिंता के पास एक समय खाना खाने तक के पैसे नहीं थे, जिसके कारण उन्हें दो वक्त के खाने के लिए मजदूरी करनी पड़ती थी। आइये जानते है अचिंता शेउली की मोटिवेशन स्टोरी।

अचिंता ने अपने बड़े भाई को ही देखकर 2011 में वेटलिफ्टिंग शुरू की थी, लेकिन 2013 में पिता का देहांत हो गया। तंगी इतनी थी कि पिता के अंतिम संस्कार के लिए भी पैसे नहीं थे। मां के लिए दोनों बेटों की डाइट का इंतजाम करना मुश्किल होने लगा। जिसे देखते हुए अचिंता के बड़े भाई ने अपने करियर का बलिदान देने का फैसला किया।

अचिंता के भाई आलोक बताते हैं, ‘पिता के गुजर जाने के बाद मैने वेटलिफ्टिंग छोड़ दी ताकि अचिंता अपना करियर जारी रख सकें। हम अपनी डाइट में एक-एक अंडा और एक किलो मीट ले सकें इसके लिए खेतों में मजदूरी करते थे।’ आलोक आगे बताते है कि, ‘2014 में अचिंता का पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट में चयन हो गया था। फिर उन्हें नेशनल कैंप के लिए चुन लिया गया। इस खेल में डाइट खर्च ज्यादा है।

ऐसे में DA के बाद भी उसकी डाइट पूरी नहीं होती थी। ऐसे में उसने मुझसे पैसे मांगे। फिर मैंने ज्यादा काम शुरू किया। मैं सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक लोडिंग का काम करता था। फिर शाम को 5 घंटे की पार्ट टाइम जॉब करता था और रात में एग्जाम की तैयारी भी। मां को भी खेतों में मजदूरी करनी पड़ी। हमने पैसे बचाकर अचिंता को भेजे, ताकि वह डाइट पर ध्यान दे। 2018 में खेलो इंडिया में सिलेक्शन होने के बाद अचिंता को पॉकेट मनी मिलने लगी। इसके बाद उनके डाइट खर्च का बोझ कम हो गया। अब वे केंद्र सरकार के टॉप्स योजना में भी शामिल हैं।’

आलोक ने कहा कि अचिंता ने बंगाल से नेशनल स्तर पर और देश के लिए इंटरनेशनल स्तर पर कई टूर्नामेंट में मेडल जीते। देश के अन्य राज्यों में नेशनल और इंटरनेशनल स्तर पर मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों को राज्य सरकार से मदद मिलती है, लेकिन अचिंता को बंगाल सरकार से आज तक कोई मदद नहीं मिली।

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