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कुत्तों की आबादी पर निगम ने 6 साल में करीब साढ़े 10 करोड़ रुपए किए खर्च, नहीं हो पा रहा आबादी पर नियंत्रण

इंदौर। शहर के सबसे पॉश इलाके वायएन रोड पर सुबह से लेकर देर रात तक आवारा कुत्तों का जमावड़ा सड़क पर लगा रहता हैं। यहां मॉर्निंग वॉक पर निकलने वाले राहगीर हो या फिर स्कूल बस तक जाने वाले बच्चे सभी परेशान रहते हैं। यह समस्या सिर्फ इसी क्षेत्र की ही नहीं है बल्कि शहर के किसी भी इलाके में निकल जाएं, प्रमुख सड़कें हों या गली आवारा कुत्ते नजर आ ही जाएंगे। रात में इन कुत्तों का इतना आंतक रहता है कि लोग दोपहिया वाहन से भी निकलने में डरते हैं। इन आवारा कुत्तों पर नियंत्रण करने के लिए नगर निगम ने 6 साल में करीब साढ़े 10 करोड़ रुपए खर्च कर दिए है, लेकिन फिर भी कुत्तों की आबादी पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।

नसबंदी पर लाखों खर्च के बाद भी बढ़ रही आबादी

सूत्रों की माने तो शहर की एक संस्था ने नगर निगम से आंकड़े जुटाकर नगर निगम को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है। संस्था के मुताबिक पहली बार नगर निगम ने 2010 में कुत्तों की गिनती कराई और बताया कि शहर में दस हजार कुत्तें हैं। इसके बाद 2014 में कुत्तों की नसबंदी का सिलसिला शुरू हुआ और दावा किया गया कि 2020 तक सभी की नसबंदी कर देंगे, लेकिन अब कहा जा रहा है कि पचास हजार कुत्तों की नसबंदी बाकी है। नसबंदी पर अनाप-शनाप खर्च के बाद भी इनकी आबादी तो रुकी ही नहीं, बल्कि 2022 में इनकी तादाद 10 हजार से बढ़कर 1 लाख 75 हजार पर पहुंच गई। संस्था के अधिकारियों की माने तो नगर निगम ने 2020 में दो करोड़ 44 लाख 95 हजार रुपए खर्च नसबंदी का बताया। वहीं 2021 और 2022 में भी करोड़ों रुपए का बजट रखा। एक नसबंदी पर 935 रुपए दिए जाते हैं। इस तरह तीन सौ दिन नसबंदी हुई तो 87 नसबंदी रोज होना चाहिए, लेकिन इसके तो कोई इंतजाम नजर नहीं आते।

नसबंदी के लिए पांच दिन रखते हैं

एक कुत्ते को नसबंदी के लिए 5 दिन रखा जाता है। ट्रेचिंग ग्राउंड में सिर्फ 75 पिंजरे हैं, इसलिए इतनी नसबंदी कैसे मुमकिन है? उन्होंने कुत्ते काटे के इलाज का आंकड़ा भी निकाला, जिसके मुताबिक हर साल बीस से तीस हजार लोग कुत्ते काटे का इलाज कराने के लिए हुकुमचंद अस्पताल पहुंचते हैं। आए दिन अस्पताल में उन लोगों की भीड़ रहती है, जो कुत्तों का शिकार होते हैं। कई इलाके तो ऐसे हैं, जहां कुत्तों ने लोगों का जीना मुश्किल कर रखा है। उनकी शिकायतों का नगर निगम में अंबार है, पर कोई कार्रवाई नहीं होती। कई मोहल्लों में तो बच्चे घर से निकलने में डरते हैं कि कुत्ते न काट लें। इन्हें स्कूल बस तक छोड़ने के लिए भी घरवालों को जाना पड़ता है।

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