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Swami Vivekanand: पिता थे पाश्चात्य विचारधारा के समर्थक, पुत्र विवेकानंद ने अपनाया भारतीय संस्कृति को

Swami Vivekanand: स्वामी विवेकानंद को आधुनिक भारत का क्रांतिकारी संत कहा जाता है। वह सनातन संस्कृति की विचारधारा से ओतप्रोत थे और पाश्चात्य सभ्यता को देश के बड़ी चुनौती मानते थे। स्वामी विवेकानंद भारतीय संस्कृति का मजबूत पक्ष रखने के लिए सात समंदर पार गए और विश्व धर्म संसद में अपना पक्ष मजबूती से रखते हुए दुनियाभर में हिंदूत्व का डंका बजाया।

कोलकाता में हुआ था स्वामी विवेकानंद का जन्म

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका नाम नरेंद्र दत्त था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। नरेंद्र के पिता हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील थे और वो बेटे नरेंद्र को भी पाश्चात्य विचारधारा में रंगकर आगे बढ़ाना चाहते थे, लेकिन नरेंद्र छोटी उम्र से ही सनातन संस्कृति के कट्टर समर्थक थे और उनका मन धर्म-कर्म में रमता था। इसके लिए वो पहले ब्रह्म समाज में गए, लेकिन यहां पर उनका मन नहीं लगा।

25 साल कि उम्र में लिया था संन्यास

1884 में नरेंद्र के पिता का देहांत हो गया और उनके घर के हालत खराब हो गए, लेकिन उन्होंने हौंसला नहीं छोड़ा और ज्ञान प्राप्ति की लालसा में लगे रहे। नरेंद्र ने उच्च् शिक्षा हासिल की और वेदों का ज्ञान भी प्राप्त किया। रामकृष्ण परमहंस से जब उनकी पहली मुलाकात हुई तो नरेंद्र ने अपनी जीवन अपने गुरु रामकृष्ण को समर्पित कर दिया और 25 साल कि उम्र में नरेंद्र सन्यास लेकर नरेंद्र से विवेकानंद बन गए।

गुरु के अवसान के बाद किया भारत भ्रमण

विवेकानंद कुछ ही दिनों में गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस के खास शिष्य बन गए और गुरुसेवा के साथ ज्ञान की प्राप्ति में लग गए। स्वामी रामकृष्ण परमहंस के अंतिम समय में स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु की बहुत सेवा की और उनके देह अवसान के बाद भारत भ्रमण पर निकल गए। 1893 में उनको शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने का अवसर प्राप्त हुआ और वहां पर उन्होंने अपने संबोधन से दुनियाभर में भारत की धाक जमा दी। उनकी बातों का अमेरिका के लोगों पर इतना गहरा असर हुआ कि पाश्चात्य विद्वान स्वामी विवेकानंद की तारिफों के पुल बांधने लगे।

रामकृष्ण मिशन की स्थापना की

स्वामी विवेकानंद तीन साल तक अमेरिका में रहे और वहां के लोगों को सनातन संस्कृति के अदभुत और रहस्यमयी ज्ञान से परिचित करवाया। अमेरिका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और बड़ी संख्या में अमेरीकी उनके शिष्य बने। दुनिया को वेद-शास्त्रों के ज्ञान से रोशन करने वाले स्वामी विवेकानंद का 4 जुलाई 1902 को देहवसान हो गया। कृतघ्न राष्ट्र आज भी उनकी अमूल्य सेवाओं का ऋणी है।

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