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देशद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा फैसला, 152 साल पुराने कानून के तहत नए केस दर्ज न करने के निर्देश

नई दिल्ली। देशद्रोह कानून पर केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में जवाब दायर किया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को IPC की धारा 124ए के प्रावधानों पर फिर से विचार करने की अनुमति दी है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक री-एग्जामिन प्रोसेस पूरी नहीं हो जाती, तब तक 124ए के तहत कोई मामला दर्ज नहीं होगा।

इसके पहले सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि IPC की धारा 124ए पर रोक न लगाई जाए। उन्होंने यह प्रस्ताव दिया है कि भविष्य में इस कानून के तहत FIR पुलिस अधीक्षक की जांच और सहमति के बाद ही दर्ज की जाए। केंद्र ने कहा कि जहां तक लंबित मामलों का सवाल है, संबंधित अदालतों को आरोपियों की जमानत पर शीघ्रता से विचार करने का निर्देश दिया जा सकता है। गौरतलब है कि देशद्रोह के मामलों में धारा 124A से जुड़ी 10 से ज्यादा याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।

देशद्रोह कानून पर याचिकाएं दायर करने वालों में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा, छत्तीसगढ़ के कन्हैयालाल शुक्ला शामिल हैं। इस कानून में गैर-जमानती प्रावधान हैं। यानी भारत में कानून द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत, अवमानना, असंतोष फैलाने को अपराध माना जाता है। आरोपी को सजा के तौर पर आजीवन कारावास दिया जा सकता है।

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